________________
/JAPA
--
PimplAIN
DO
शिवानन्दा भी आनन्द श्रावक की बातें प्रेम से सुनती है । सेवकों को
बुलाती है।
धर्मकार्य में उपयोगी रथमँगाती है। . . दासियों और सखियों से घिरी हुई प्रभु के पास जाती है।
धर्मदेशना सुनकर प्रसन्नतापूर्वक गृहस्थधर्म को स्वीकार कर वापस घर आती है। इस बीच श्री गौतमस्वामीजी ने प्रभु वीर से आनन्दश्रावक के विषय में वह दीक्षा ग्रहण करेगा या नहीं, यह प्रश्न करने पर प्रभु ने 'नो इनटेसमटे' इन शब्दों में निषेधकर दीर्घकाल तक श्रमणोपासकत्व का पालन कर वह सौधर्म देवलोक में अरुणाभ विमान में देव के रूप में उत्पन्न होगा ऐसा बतलाया। उसके बाद प्रभुने अन्यत्र विहार किया। .. ___ श्रमणोपासिका शिवानन्दादेवी उत्तम श्रावकधर्म का श्रेष्ठ पालन करती है। उत्तम जीवों को पुण्ययोग से परिवार भी धर्मसंस्कारी और प्रेरणा देनेवाला मिलता है। नहीं तो धर्म साधना में विज खड़े होने है, तब तो सात्विक पुरुष ही धर्म में स्थिर रहपाता है।
आनन्द श्रावक परमसात्विक है। पुण्यवान होने के कारण परिवार भी अनुकूल है।
अतः श्रावक जीवन को जीते-जीते चौदह वर्षों अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक पूर्ण कीये।एकमध्यरात्रि में धर्मजागरिका करते हुए मन में एक संकल्प उत्पन्न होता है।
.... प्रभुवीरं के दश श्रावक
१७