Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 33
________________ ... आरम्भ हिंसा में परिणत होता है। इस प्रतिमा में पूर्व के व्रत नियमों का पालन करते हुए आठ महीने तक स्वयं आरम्भ वृत्ति का त्याग करना पड़ता है। ९.भृतकप्रेष्यारम्भ प्रतिमा : पूर्व के नियमों का पालन करते हुए नौ महीने तक स्वयं आरम्भ नहीं करता है।और न सेवक आदि के द्वारा कराता है ।अनुमति देना उसका नियम नहीं है। और स्वयं के लिए बने हुए भोजन का भी त्याग नहीं होता । जिसे उद्दिष्ट भोजन कहा जाता है। १०.उद्दिष्ट भोजन वर्जन प्रतिमा : अब अपने लिए बनाए गए भोजन का भी त्याग है और पूछे जाने पर उस सम्बन्धमें मैं यह जानता हूँया नहीं जानता हूँ, यही जवाब दिया जाता है। इससे अधिक कुछ भी नहीं कहा जाता है । अर्थात् किसी प्रकार की आज्ञा या विचारणा नहीं की जाती।इसकी साधना का काल दस महीने का है। . ११. श्रमणभूत प्रतिमा: साधु जैसा वेश होता है, . . मात्र आगेधोती जैसी पाटली रखी जाती है, . पात्र वरजोहरण धारण किया जाता है, . लगभग साधु जैसा ही आचरण किया जाता है, यही कारण से श्रमणभूत कहलाता है, मात्र गोचरी के लिए सम्बन्धियों के घरों में जाता है। 'प्रतिमाधारी श्रावक कों भिक्षा दो' इन शब्दों का उच्चारण करता है।लोच या मुंडन यथाशक्ति करता है। इसका कालप्रमाणग्यारहमहीने का होता है। ये सारी प्रतिमाएँ साढ़े पाँच वर्षों में पूरी होती है। . प्रतिमाओं के वर्णन में मतान्तर भी है। श्री आवश्यक चूर्णि में एक से चार प्रतिमाएँ तो यथावत् हैं। परन्तु पांच से ग्यारह तक क्रमशः इस प्रकार हैं-५. रात्रिभोजन परिज्ञा, ६.सचित्ताहार परिज्ञा, ७.दिवाब्रह्मचारी रात्रि में परिमाणकर्ता,८.रात्रि-दिवा ब्रह्मचारी-अस्नानी-केशदाढ़ी नख अशोधक, ९. आरम्भपरिज्ञा, १०. प्रेष्यारम्भ परिज्ञा, ११. उद्दिष्ट भोजन वर्जन-श्रमणभूत प्रतिमा। परन्तु एक बात निश्चित है कि गृहस्थवास में रहकर की जानेवाली यहसाधना मनोमन्थन का अद्भुत आदर्श है। ....... प्रभुवीर के दश श्रावक २१

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