Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 24
________________ संकल्पशक्ति : व्रत स्वीकार त्रस और स्थावर दो प्रकार के जीवों में पृथ्वीकाय आदि पांच प्रकार के एकेन्द्रिय जीव स्वयं चलं फिर नहीं सकनेवाले जीव स्थावर कहलाते हैं और दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव त्रस कहलाते हैं। स्थावर जीवों की हिंसा के बिना संसार नहीं चल सकता। गृहस्थ जीवन क्यों पापरूप माना जाता है, यह इससे समझा जा सकता है। गृहस्थ व्यक्ति स्थावर जीवों की हिंसा नहीं छोड़ सकता । अत: आनन्द श्रावक ने सम्यक्त्व सहित स्वीकारे हुए व्रतों में हिसात्याग, जिसे प्राणातिपात विरमण कहते है। उस स्थूल से अर्थात् त्रस जीवों की हिंसा का त्याग किया है, वह भी 'निरपराधी त्रस जीवों को मारने की बुद्धि से निरपेक्ष होकर नहीं मारूँगा ।' ऐसा संकल्प किया । यहसंकल्पग्रहण हृदयंगम वस्तु है । व्रतों को स्वीकार करना एक प्रकार का संकल्प है । उससे मनुष्य की इच्छाशक्ति की मर्यादा होती है । उसे नियन्त्रित कर योग्य मार्ग पर लाया जा सकता है । पांच अणुव्रतों में यहस्थूल प्राणातिपातविरमण व्रत है । ऐसे अन्य चार व्रत हैं । तीन गुणव्रत हैं और चार शिक्षाव्रत हैं । इस प्रकार श्रावकों के करने योग्य बारहप्रकार के व्रत - संकल्प हैं । मनुष्य जैसा चाहता है, वैसा अपने मन को मोड़ सकता है । प्रतिज्ञा एक प्रकार की बाँधहै, प्रतिज्ञा की बाँधबनानेवाले पापों को मर्यादित करते हैं । जो आत्मवीर्य का संरक्षण करती हैं । हिंसात्याग की ही भांति बड़े झूठ का, चोर के रूप में प्रसिद्ध करनेवाली बड़ी चोरी का भी त्याग किया । स्वदार सन्तोष तथा परदार विरमण नामक चतुर्थव्रत के रूप में भी आनन्द ने अपनी विवाहित पत्नी शिवानन्दा के सिवाय मैथुनविधिका त्याग किया। स्थूलपरिग्रह परिमाण व्रत को शास्त्र में इच्छापरिमाण भी कहा गया है । निधान, व्यापार और व्यवहार में प्रयुक्त चार-चार करोड़, इसप्रकार बारह करोड़ के सिवाय शेष स्वर्णमुद्राओं का आज से ही त्याग किया है । महानुभावो धर्मगुरु मिलने के साथ ही कितने कठिन कार्य वह कर सके । प्रभुवीर के दश श्रावक १२

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