Book Title: Piyush Ghat
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 7
________________ पं० श्री मल्ल जी को बलबान् प्रेरणा मेरे हाथों की गति को बढ़ा दिया करती थीं। इन्हीं साथियों की यह पावन प्रेरणा का मधुर परिणाम 'पीयूष घट' हैं ! ३०० कहानियाँ लिखवा लेना इन्हीं स्नेहियों का काम है। अन्यथा मुझ जैसा अलस व्यक्ति क्या लिखता ! इन साथियों में काम करने की आग है ! इन की आत्मा की जड़े निष्ठा के पानी से सिंचित हैं। यही कारण है कि उत्साह की खाद दे-देकर मुझ से इन्होंने ये कहानियाँ लिखवा ली! ___ 'कहानी की कहानी' का यह पूर्वाध हुआ उत्तरार्ध यों हैये कहानियाँ कहानी कला की दृष्टि से पूर्ण है या नहीं इसका दावा मैं तो कैसे कर सकता हूँ लेकिन धर्म, दर्शन, इतिहास, संस्कृति साहित्य और समाज-विषय के पाठक इस से रस ग्रहण कर सकेंगे-ऐसा मैं विश्वास लेकर चल रहा है। भारताय संस्कृति के संगीत के स्वरों को इन कहानी में रहे तथ्यों से गति मिलेगी, लय मिलेगी, ताल मिलेगी और मिलेगा वह सब कुछ जो आज के शस्त्रात्मक संहार युग से ऊबे मानव में एक खास तरह की दिलीतमन्ना अन्दर-ही-अन्दर फड-फडा रही है-उसे राहत ! एक बात और जिसके विषय में मौन रहना Sin of omission होगा। मनुष्य का Sin of comission से बचना सरल है, परन्तु Sin of omission से बचना दुष्कर है। 'पीयूष-घट' की सजावट, जगमगाहट और साज-सज्जा श्रीसुबोध मुनि जी की है। वे प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादक हैं। सम्पादन सुन्दर एवं सजीव है ! वह मुझे भाया ! उसने मेरा मन मोहा !! आँखें ठहरा लीं !! और दिल जीत लिया !!! पाठकों को भी वह पसन्द आएगा ही। इसो विश्वास के साथ विराम ! माता रुकमणी भवन, जैन स्थानक, कानपुर. २०-६-६० ई० ----विजय मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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