Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2 Author(s): C K Nagraj Rao Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 7
________________ अधिकारी की गृहिणी की तरह रही हैं। हेग्गड़े वगैरह को तो युवराज के वहाँ पहुँचने के बाद ही मालूम हुआ कि वे चालुक्य पिरियरसी हैं।" "मुझे ये सब बातें मालूम नहीं।' ऐसी बातों को कहेगा भी कौन? बड़े लोगों का नाम ही बार-बार लिया जाता है क्योंकि इससे उन्हें फ़ायदा होता है।" ''हो सकता है। जब तक हम रहे शायद एकाध बार कभी उनकी बात उठी हो, वस ।' आश्चर्य है! तब तो यही सोचना होगा कि युवराज और बड़े राजकुमार के युद्ध में जाने की बात शायद ही होती हो" "वह बात राज्ञ तो नहीं उठती थी, फिर भी कभी-कभी किसी प्रसंग को लेकर चचा आ जाती थी। खासकर बड़े राजकुमार के युद्ध में जाने से सवको किसी-न-किसी तरह की चिन्ता तो रहती ही थी।' __ "राजकुमार के युद्ध में जाने से युवगनी जी का चिन्तित होना स्वाभाविक ही "सन्निधान से भी अधिक चिन्ता हेग्गड़े दम्पती को रही। युद्ध-शिविर से जैसे ही पत्र-वाहक आता, में सबसे पहले राजकुमार के ही बारे में दर्यात करते, द्वाद में युवराज के बारे में पूछते।" 'जन्म देनेवालों से अधिक इन्हें चिन्ता?" । "उनकी ऐसी आत्मीयता वास्तव में अन्यत्र दुर्लभ है।" । “मालूम पड़ता है, लोगों को अपना बनाने में यह हेग्गड़े परिवार सिद्धहस्त "उनका व्यवहार ही ऐसा है. दण्डनायिका जी। हर किसी को उनसे अपनापन हो जाता है।" ''सच है। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं स्वभाव से ही किसी से ज्यादा पेल-मिलाप नहीं रख पाती। फिर भी उन्हें अपने घर बुलाकर उनका आदर-सत्कार करने की इच्छा है।" "हेग्गड़ती जी आपके प्रेमपूर्ण आतिथ्य को आज तक नहीं भूलीं। आपने जो उपहार दिया था, उस पर उन्हें बड़ा ही गौरव है।" "यह सब आपको कैसे मालम?" "उस दिन ओंकारेश्वर के मन्दिर में कार्तिक दीपोत्सव का आयोजन था। इस अवसर पर युवराज और राजकुमार और...और ढ़ाकरस-इन सबकी कुशल कामना के लिए विशेष पूजा-अची की व्यवस्था की गयी थी। हम सब वहीं गये धे। उस दिन वे और उनकी बेटी, दोनों ने उन्हीं वस्त्रों को धारण किया था जिन्हें आपने पट्टमष्ट्राटेवी शान्तला : 'भाग दो :: ।।Page Navigation
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