Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 6
________________ परन्तु प्रस्तुत सन्दर्भ में ऐसा करना उचित नहीं होगा-यह सोचकर मुझसे यह विनतीं आप तक पहुंचाने को कहा है। 'युवराज के लौटने पर सब तरह से यहाँ की व्यवस्था कर लेने के बाद, या अगली बार तारा भगवती के उत्सव क अवसर पर आप लोग यहाँ अवश्य पधारें'--यह उनकी आकांक्षा है। और हाँ, हेग्गड़ेली भी स्वयं दण्डनायक जी से निवेदन करेंगे।" "देखेंगे, दण्डनायक जी का सहारा मिले तभी कुछ सम्भव होगा। उनके बिना मन-गरजी जहाँ कहीं जाना आना नहीं हो सकेगा। और फिर महाराज...वह भी तो दण्डनायक जी को अपनी आँखों के सामने ही रखे रहना चाहेंगे, कहीं दूर नहीं जाने देंगे।" "महाराज की ऐसी चाह.-यह थी तो महाभाग्य ही है, दण्डनाविका जी।'' “सों तो ठीक हैं। ऐसा न होता तो दण्डनायक जी तो अब तक..." "जनकी निष्ठा और विश्वास न ही उन्हें इस पद पर पहुंचाया है। बड़ी महारानी जी का इतना स्नेह अन्य किसी पर क्यों नहीं हुआ?'' “सो तो ठीक है, घोसल वंश के प्रति मेरे मायकेवाले और दण्डनायक जी के घरानेवाले सदा ही निष्ठावान रहे हैं।' ____ 'आप सबके ही कारण इस राजघराने की पत्किंचित् सेवा करने का मुझे भी अवसर प्राप्त हुआ-हालाँकि आपके सामने ही ऐसा कहना ठीक नहीं जंचता, आपके तथा दण्डनायक जी के प्रति में बहुत मणी हूँ।" कवि ने कृतज्ञता के स्वर में कहा। "ठीक है। अब आपको चाहिए कि इस कण को राजकुमारों की प्रगति के लिए परिश्रप करके चका दें।" ''यथाशक्ति मैं यही प्रयत्न कर रहा हूँ।" "ठीक है। बलिपुर आपको पसन्द आया फिर भी वहाँ बेचारी युवरानी जी की बहुत तकलीफ़ हुई होगी। हुई होगी न?" ____“जहाँ तक मैं जानता हूँ, ऐसा कुछ नहीं हुआ है। फिर भीतरी बातें कौन जाने!" "बड़े स्थानों में रहनेवालों के लिए जैसी व्यवस्था होनी चाहिए वह छोटी जगहों पर नहीं हो सकती। सब तरह से व्यवस्था करने की प्रबल इच्छा होने पर भी वैसा नहीं हो पाता।" "वहीं ऐसी स्थिति का अनुभव ही नहीं हुआ, दण्डनायिका जी। इतना ही नहीं, सुनते हैं कि पहले वहाँ चालुक्य पिरियरसी जी भी रहीं। सी ऐसे अवसर पर क्या और कैसी व्यवस्था होनी चाहिए इसकी उन्हें जानकारी भी हैं।'' 'चालुक्य पिरियरसी वहाँ पिरिबरसी बनकर नहीं, वरन् एक साधारण 10 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो

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