Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 4
________________ : ! अपने भाई ने ही गुप्तचर लगा दिया यानी वह अपने भाई का विश्वास भी खो बंदी है। यह सब वह अच्छी तरह जान चुकी थी "मैंने कैसा काम किया? मेरी विवेक बुद्धि तव कहाँ खो गयी थी मैं किसी को अपने बराबर की नहीं मानती थी, इतराती थी। अब शमं से सिर झुकाकर चलना पड़ा न इस सबका कारण परिवार मेरे पूर्वज के शत्रु है। यह तो मेरा भाग्य ही कहो कि युवराज को देखने का बहाना बनाकर हेग्गड़ती और उसकी लड़की यहाँ नहीं आयी युबराती के मन को मेरे ख़िलाफ़ भरतवाला फिलहाल कोई नहीं । उस वामशक्ति पण्डित ने जो कालावधि बतायी थी, वह भी अब पूरी हो गयी। इस 'सर्वतोभद्र' यन्त्र के प्रभाव से शायद आगे योग्य फल मिले अपने भीतर के भय को दूर करके भाई के कहे अनुसार चलने का प्रयत्न करना चाहिए । यों तो मेरे ख्याल में उनकी भी सहानुभूति है। और फिर युद्धभूमि से लौटने के बाद पद्मला को देखने के लिए राजकुमार आएँगे ही तन्य स्थिति समझकर आगे का कार्यक्रम निश्चित करना होगा। इस बीच कुछ साहस करके एक बार युवरानी को देख आने की रस्म भी पूरी कर लूँगी। और तब चायला से कहकर छोटे अप्पाजी के द्वारा कुछ बातें जानने का प्रयत्न करूँगी... युवरानी से मिलने जाऊँगी तो तीनों बेटियों को साथ लेकर ही जाना टीक रहेगा। अकेली जाऊँगी तो पता नहीं, बात कहाँ से कहाँ पहुँच जाएगी। ऐसा मौका ही क्यों हूँ। दण्डनायक के राजमहल से लौटने के बाद इस बात का निर्णय करेंगे कि कब युवरानी से मिलने जाएँ...” उस तरह पता नहीं, दण्डनायिका चामच्चे ने क्या क्या सोच रखा था? - परन्तु युवराज के दर्शन हुए बिना युबरानी जी किसी से नहीं मिलेंगी इस बात की सूचना मिलने के कारण चाम को राजमहल जाने का अवसर ही नहीं मिला। उसने सोचा कि क्यों न किसी तरह से कवि नागचन्द्र को बुलवाकर उनसे वहाँ की बातों का पता लगाया जाए। उसके भाई ने यद्यपि स्पष्ट कहा था कि ज़्यादा मीम मेख में नहीं पड़ना, शान्त रहना फिर भी भला वह कैसे शान्त रह सकती थी ! मालकिन की आज्ञा पाते ही सेवक दड़िगा कवि को बुलाने चला गया। कवि नागचन्द्र बुलावा पाते ही चले आये। दण्डनायक परिवार का नमक खाया है, यह बात वह कभी नहीं भूल पाते थे। यूँ दण्डनायक से उनकी मुलाक़ात हो चुकी थी। लेकिन उन्होंने घर पर आने के बारे में कुछ नहीं कहा था, इसलिए usarयिका चामब्बे के इस बुलावे से कविराज जी कुछ परेशान हुए। जैसे दोरसमुद्र अचानक छोड़कर चले आने के कारण वह दण्डनायिका से नहीं मिल सके थे। अब कुछ भी हो जाकर दण्डनायिका से मिलना कर्तव्य समझकर बुलावा आते ही वह चले आये। जब वह आये तो दण्डनायक जी घर पर नहीं थे । राजमहल गये थे। बच्चों का शिक्षण कार्य चल रहा था। 8 : पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो

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