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... , . प्रस्तावना
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प्रस्तुत नथ परमात्म प्रकाश ( परमप्पयासु) सागार एवं अनागारों में प्रति प्रसिद्धि को प्राप्त है। नथ कर्ता जोइन्दुदेव ( योगीन्द्र देव ) महान् अध्यात्मवेत्ता, स्व-ख्याति पूजा से अति निस्पृह साधु थे। इनकी पांच और रचनाओं की चर्चा एवं नाम अन्यान्य ग्रंथों में पाये जाते हैं । इनका समय ईसा की छटी शताब्दी है । ग्रंथ कर्ता का मुख्य उद्देश्य जन्म मरण के दुःखों से दुखी भट्ट प्रभाकर, जो इनका ही शिष्य था-के लिये-बैराग्य एवं अध्यात्म में रुचि उत्पन्न करने का है। प्रायः सभी प्राणी भव-भोगों, इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोगज दुःखों से दुखी एवं विकल पाये जाते हैं। उन सभी कल्याणेच्छु भव्य जीवों के लिये यह ग्रंथराज उनके प्रात्म-कल्याण में सर्वोपयोगी है । वैसे सभी जीव जो आस्तिक हैं उन सब को यह ग्रंथं प्रिय होगा। कारण यह साम्प्रदायिकता से रहित रचना है। ......
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- ' विवरण-अध्यात्म वेत्ता श्री योगीन्दु देव ने प्रथम ही मंगलाचरण सात (७) दोहों में किया है। फिर तीन दोहों में शिष्य प्रभाकर भट्ट की विनती का वर्णन है कि "चतुर्गति-दुःखैः तप्तानां चतुर्गति-दुःख-विनाशकरः यः कश्चित् परमात्मा तमपि प्रसादेन कथय" । हे स्वामी चारों गतियों के दुःखों से तप्त हम जीवों को चारों गतियों के दुःखों के नाश करने वाला जो चिदानंद परमात्मा है उसका स्वरूप कृपा कर कहें। इस प्रश्न पर परमात्म प्रकाश की अपभ्रंश भाषा जो इस समय बोलचाल में थी, रचना प्रगट हुयी । इस प्रकार ११ से १५ तक दोहों में त्रिविध आत्मा का वर्णन है। और १० दोहों में विकल परमात्मा का वर्णन है। पश्चात् २४ दोहों में सकल परमात्मा का वर्णन है । फिर ६ दोहों में जीव स्व शरीर प्रमाण एवं अन्यवादियों के एकान्त का निराकरण है । आगे मिथ्यात्व से जीव की हानि एवं सम्यक दृष्टि.(निश्चय ) कर्म, गुरण, पर्याय, द्रव्य तथा शुद्धात्मा, शुद्ध परिणाम आदि का सूक्ष्म विवेचन है । इस प्रकार इस प्रथम अधिकार में १२६ दोहे हैं। . .
द्वितीय महाधिकार में १० दोहों में मुक्ति का स्वरूप फल एवं निविकल्प दशा का वर्णन किया है। पश्चात् १६ दोहों में निश्चय मोक्षमार्ग, व्यवहार मोक्षमार्ग का