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[ ३ ] उ०-निश्चय-दृष्टि से जीव अंतीन्द्रिय हैं. इस लिये उन का
लक्षण अतीन्द्रिय होना ही चाहिए, क्यों कि लक्षण लक्ष्य से भिन्न नहीं होता। जब लक्ष्य अर्थात् जीव इन्द्रियों से नहीं जाने जा सकते, तब उन का लक्षण
इन्द्रियों से न जाना जा सके, यह स्वाभाविक ही है । (8)प्र०--जीव तो आँख आदि इन्द्रियों से जाने जा सकते
हैं । मनुष्य, पशु, पक्षी कीड़े आदि जीवों को देख कर व छ कर हम जान सकते हैं कि यह कोई जीवधारी है। तथा किसी की आकृति आदि देख कर या भाषा सुन कर हम यह भी जान सकते हैं कि अमुक जीव सुखी, दुःखी, मूढ, विद्वान्, प्रसन्न
या नाराज है। फिर जीव अतीन्द्रिय कैसे ? उ०-शुद्ध रूप अर्थात् स्वभाव की अपेक्षा से जीव
अतीन्द्रिय है । अशुद्ध रूप अर्थात् विभाव की अपेक्षा से वह इन्द्रियगोचर भी है । अमूर्तत्वरूप, रस आदि का अभाव या चेतनाशक्ति, यह जीव का स्वभाव है, और भाषा, आकृति, सुख, दुःख, राग, द्वेष आदि जीव के विभाव अर्थात् कर्मजन्य पर्याय हैं । स्वभाव पुद्गगल-निरपेक्ष होने के कारण अतीन्द्रिय है और विभाव, पुदगल-सापेक्ष .
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