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२ पदार्थ सामान्य सत्ता रखता है अर्थात् जो exist करता है, या जो सत् है वही पदार्थ या वस्तु या द्रव्य है । ४. सत् क्या है ? ___ अब प्रश्न होता है कि सत् क्या ? भैया। चारों ओर दष्टि दौडाकर देख और तनिक सूक्ष्मतासे विचार कि जो कुछ तुझे यहाँ दिखाई दे रहा है, उस सबका मूल स्वभाव क्या है, क्योकि जो दिखाई दे रहा है वही सत् है, ऐसा पहले कह दिया गया है । अत' जो दृष्ट पदार्थोका स्वभाव है वह सत्का ही स्वभाव है ऐसा जान।
तू प्रत्यक्ष देख रहा है कि यहाँ हर वस्तु या पदार्थ परिवर्तनशील व क्रियाशील है। परिवर्तन करनेका अर्थ है पदार्थके अपने भीतर ही कुछ विचित्रताओका होना अर्थात् पदार्थके अपने ही गुणोका बदल जाना, जैसे आम्रफलमे कच्चेसे पक्का हो जानेपर उसका रग भी हरेसे पीला हो जाता है, उसका स्वाद भी खट्टेसे मीठा हो जाता है, उसकी गन्ध भी बदल जाती है और उसका स्पर्श भी कठोरसे नरम हो जाता है अर्थात् उसके सारे गुण ही बदल जाते हैं। अथवा तू स्वय बालकसे युवा तथा युवासे वृद्ध हो जाता है । क्रियाका अर्थ है गमन करना या एक स्थानसे सरककर दूसरे स्थानपर पहुँच जाना, जैसे कि यह पुस्तक यहांसे उठाकर वहाँ रख दी गयी, वायु के झोकेसे यह पत्ता उडकर यहांसे वहाँ चला गया, अथवा वायु नित्य गतिमान है और जल नित्य प्रवाहशील है।
परिवर्तन व क्रिया ये दो बातें प्रत्येक द्रव्यमे दिखाई दे रही हैं, अर्थात् प्रत्येक पदार्थ अपने रूप व स्थान बदल रहा है, और इसीलिए उसका समूह जो यह विश्व है वह भी बराबर परिर्वतन तथा