Book Title: Nayakumarchariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Balatkaragana Jain Publication Society

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Page 102
________________ 3. 14. 2.] णायकुमारचरिउ घत्ता - करि णउ कंकणई दिट्टई णिवेण घरि मिलियहं । कंठि ण हारलय णउ सीसि मउड मंडलियहं ॥ १२ ॥ 13 Learning from them about the skill of Nagakumara at the game of dice, he invites the prince for a game with him and loses his all to him. The prince, however, returns everything to his father but secures the release of his mother's ornaments. दुवई - पुच्छिय पत्थिवेण कै म्हई नियणिययं ण भूसियं । ता कहियं णिवेहिं णर जाहहो णायकुमारविलसियं ॥ तोसु वराडी देव चमक्कइ लइयउ उरमाणिणिमणहारे धणु सयलु वि जं कण्णपवित्तर सुणेवि णरवइ तुहिक्कउ अण्णा दिणि कोक्किउ सपसाएं पुत्त जूड भल्लारउ जाणहि देवासुरहं मणोरहगारउ मई सहुं अज्जु सलक्खण खेल्लहि तातिं तिह करेवि खणे जित्तउ पुणु तोकेर तासु जि दिण्णर ॐ चिरु लयउ हरेवि णरिंदें दव्यु सव्वु मेल्लाविउ माय Jain Education International अम्हारी आवंति णं थक्कइ । अहिणवेण जाएं जूवारें । सिरिवम्महो दोहित्तै जित्तउ ! णियकरकमलपिहियमुहु थक्कउ. यिद बोल्लाविउ राएं। णिच्चमेव तुहुं जयसिरि माणहि । अक्खजूर जणमणहं पियारंउ । देहि सारि लइ पासउ ढालहि । जणणदविणु णीसेसु वि हित्तर । एम कवणु पालइ पडिवण्णंउ । तं तणएं नियकुलणहचंदें । घरु पट्टवि पवड्डियळायहे । घत्ता - महिलहं जडयणहं धणु हीणहं दीणहं दुर्लहुँ । उत्तममाणुसहं गुणवंत माणुसु भलेंउ ॥ १३ ॥ 14 Nagakumara subdues a turbulent horse. This excites the jealousy of Sridhara. दुवई - अण्णहिं दिणि तुरंगु तहो दरिसिउ रावं हिलिहिलिहिंसिरो । रिमुहु णं कवयणभासि ॥ ३३ 5 अणि 100 d 13. १ E किं. २ ABDE जासु. ३ Eomits ण ४ CD पुर° ५ E मणमारें, ६ CE तं णिणिवि. ७ C° हर. ८ EBC omit this line and D gives it in the margin C 'वत्तउ, १० ABD हीणदीणजणदुल्लहु. ११ C वल; E वलहे. 14. 1 D°हिहिंसरो. २ E वयणु भासिओ. नागकुमार.... ५. For Private & Personal Use Only 10 15 www.jainelibrary.org

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