Book Title: Nayakumarchariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Balatkaragana Jain Publication Society

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Page 169
________________ पुप्फयंतविरइयउ 13 I e Right knowledge and the Right conduct. कोहलोहमोहंग छिंदिवि बारहविहु तवचरणु चरेपणु इंदपदिह मंद हवेष्पिणु परमाणु परमेट्ठि णवेष्पिणु पंचसु पंचसु पंचसु धामसु णिवकुलणहयलउग्गयणेसर धरणिधराधर करिदीहरकर मेइणि भुंजिवि अहव ण भुंजिवि केवलणाणु विमलु उप्पाइवि सुहुमु दूरु अंतरियउ दिउ देउ दोसणिम्मुक्कु समासिउ सलु देउ अरहंतु भडारउ घोरई पंउरई तिमिरई भिंदिवि वरपंडियमरणेण मरेष्पिणु । चोक्खई सुरसुक्खई भुंजेष्पिणु । दिव्व अवसाणि मुए पिणु । भरहविदेहइरावयणामसु । अइसयवंत संत परमेसर । धत्ता-धम्मु अहिंसा परमु जएं तित्थई रिसिठाणाई पवित्तरं । Jain Education International [9. 13. 1 अतुल महाबल सयल वि जिणवर । अप्पाणड चरिते णिउंजिवि । लोयालोउ सब्बु अवलोइवि | तिहुय जणे परमेट्ठिहिं सिउ । दुविहु सयलु णिक्कलु उवएसिउ । णिक्कलु सुड्डु सिड असरीरउ । मोक्मग्गु सुंदर मुणसु तिण्णि वि दंसणणाणचरित्तरं ॥ १३ ॥ 14 The teacher concludes his discourse and Nagakumara accepts the excellent faith. धिट्टिएं तिट्टिए जो उ चत्तउ णमोक्खु तो किंकिर छज्जइ मोक्खु गुणक्खण जहिं जायर अण्णेको संसारु ण पिडि सुण्णु मोक्खु अण्णेण पलोइड दिक्खामोक्खु तेण किं वृत्तउ । जो कामिणिहिं कडेक्खहिं छिज्जइ । जीवविणासु तेण विण्णायउ । रणरणु सात्थु परिट्टिउ । अण्णे अप्पर गयाण निओइउ । For Private & Personal Use Only 5 10 13 १ मोहंगय छंडिवि. २ I पवरई ३ E सोक्खई. ४ E ° णाहु. ५ E एरावय ६ चारित ७ C तिहुण; तिहुवणु, ८ C परम ९ E जई. 14. १ DE चिट्ठए तिट्ठए, २ CE कडक्र्से ३ E E १० C मुक्ख. उ. ४ DE हरणु. ५E सामत्थे पइट्टिउ. १०० 5 www.jainelibrary.org

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