Book Title: Nayakumarchariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Balatkaragana Jain Publication Society
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7. 10. 18.]
णायकुमारचरिउ बद्ध जि सोहइ पटु णरिंदहो बद्ध जि सोहइ दंतु गेहंदहो। कव्वणिबंधु जि सोहइ णिवंजसु वद्ध जि सोहइ जगे पारयरसु। छुड मा णासउ खग्गालिंगणे
वद्ध जि सोहइ सुहडु रणंगणे । किं सोहंति ण बद्ध मउभड
परत विर पडंति घणथणभड । तुह पोरिसु किर केण खलिजइ तुह जसरासि केण मइलिजइ । इय संबोहिवि मुक्क सुहकरु
जयाविजयाहिउ जायउ किंकरु । घत्ता-पुरवरे सयल पइट्ट कयसोहावित्थारें।
गुणवइ मामहो धीय परिणिय णायकुमारे ॥ ९॥
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Nagakumara's homage to the sages who attained salvation at the Urjayanta
mountain. A letter-bearer arrives. णिवचउरंगणिवा इव फेडिवि
थविवि तिक्खकरवाले ताडिवि। दुहुँ दीणहं सुहं अरिहुं हरोप्पिणु थिउ गिरिणयरणिवासु करेप्पिणु । देउ पयाबंधुरु किं वण्णमि
हउं णियकुकइत्तणु अवगण्णमि । वियडकडयकीलियसुरकंतहो
अण्णहिं वासरे गउ उजिंतहो । जिणवत्थावहारवउ संसिवि
लक्षणपंति फुरंति णमंसिवि। . णाणसिलहिं णियणाणवडंचलु धोइँउ वयजलेण कउ णिम्मलु। सिहरें पावियकेवलणाणइं
वंदिय मुणिवरणिव्वुइठाणइं। धित्तदेहकक्करदरिदुग्गई
सुरकामिणिभवपावणमग्गई। विरइयबंभणिरूवुद्देसई
थाणं गयप्फलणियरुद्देसई । डिंभयभयहरणेकविहाणई
जोईय जक्खिणिणिलयणिवाणई । दीणाणाहदिण्णधणपउरहो
पुणु आयउ सुंदर गिरिणयरहो। घत्ता-थिउ तहिं ससयणु जाम ता णं सिरिहक्कारउ ।
पत्तविहूसियकंटु पत्तु एक लेहारउ ॥१०॥
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३ E गयंदहो. ४ E णिय'. ५ MSS बप्प. 11. १C बलचउरंग. २ C अरिहे; E अरिहि. ३ A थिरु. ४ 0 मणि मण्णमि. ५ CE उज्जेतहो.
६ E वंति. ७ E धोयउ. ८CE रूउ उद्देसई. ९ ABCD थाणु. १० CE जोइवि. ११ A णवाणइं. १२ E तिरिहकारिउ. १३ D पत्तु.
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