Book Title: Nay Nirupan
Author(s): Shivcharanlal Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ आचार्य ज्ञानसागर के वाड्मय में नय-निरूपण सारांश यह है कि ज्ञान की समीचीनता, चाहे वह समग्र रूप में हो अथवा आंशिक रूप में, वस्तुस्वरूप को समझने का उपाय है । 'नयनीति नयः' अर्थात् जो किसी एक लक्ष्य पर पहुँचाता है, ले जाता है वह नय है । यदि लक्ष्य की ओर अग्रसर होना है तो नयों की आवश्यकता है । इस प्रकार नयों के दो काम ज्ञात होते हैं । एक तो ज्ञान में सहायक होना, दूसरा अग्रसर कराना । अन्य शब्दों में क्रिया या गतिशीलता के सम्मुख ज्ञान के सभी साधनों को नय कहा जा सकता है । वे सभी सम्यक् रूप में स्वीकार्य हैं । अनेकान्त जैनदर्शन का प्राण है । कहा भी है, परमागमस्य जीवं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । .. सकलनयविलासितानां विरोधमथनं _ नमाम्यनेकान्तम् ॥2॥ (पुरुषार्थसिद्धियुपाय) वस्तु अनन्तधर्मात्मक है । उन धर्मों (स्वभाव, पार्श्व) को विभिन्न दृष्टियों से ही जाना जा सकता है किसी एक से नहीं । इन्हीं दृष्टियों को नय कहते हैं । पदार्थ की यथार्थता के सफल अवबोधक होने से सभी नय सार्थ है । किसी अपेक्षा से आगम और अध्यात्म इन दो रूपों में श्रुतज्ञान को विभक्त किया गया है, अलग-अलग दो श्रुतज्ञान हों और निरपेक्ष हों ऐसा नहीं है । दोनों का हर काल में सहयोगी निरूपण है । इसीलिए आगमिक नय द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक तथा आध्यात्मिक नय निश्चय और व्यवहार ३६ की संख्या के अंक ३ और ६ के समान विपरीत दिशान्मुख न होकर ६३ के पद में परस्पर सहयोगाकांक्षी के रूप में व्यवस्थित हैं। किसी अपेक्षा से आगम वर्णित द्रव्यार्थिक नय को निश्चय नय और पर्यायार्थिक नय-को. व्यवहार नय कह सकते हैं । आचार्यों ने अध्यात्म ग्रन्थों में स्थान-स्थान पर निश्चय और व्यवहार इन दो नयों का नाम लेकर प्रयोग किया है । अपेक्षा को स्पष्ट करना उनकी दृष्टि में सर्वत्र उपयोगी रहा है ताकि पाठक को भ्रम अथवा छल न हो । यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि आगम में द्रव्यार्थिक नय को व्यवहार भी कहा गया है । 5. परिभाषायें - निश्चय - व्यवहार - परिभाषायें - यहाँ कतिपय परिभाषायें प्रस्तुत की जाती हैं - निश्चय नय: 1. "निश्चिनेयति निश्चयतेऽनेन वा इति निश्चयः ।" जो तत्त्व का निश्चय कराता है, तत्त्व परिचय निर्णय कराता है अथवा जिससे अर्थावधारण किया जाता है वह निश्चय नय है। 2. "निश्चय नय एवम्भूतः ॥" निश्चय एवम्भूत है। (श्लोकवार्त्तिक - 7) 3. "परमार्थस्य विशेषेण संशयादिरहितत्वेन निश्चयः ।" (प्रव. सा. ता. वृ. 93)

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106