Book Title: Nay Nirupan
Author(s): Shivcharanlal Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 98
________________ आचार्य ज्ञानसागर के वाड्मय में नय-निरूपण 91 39. नय-निरूपण का वाच्यार्थ, कारकों के परिप्रेक्ष्य में 1. कर्ता-कारक - नय ही निरूपण होता है । यत: नय स्वयं, शब्द या शब्दात्मक या शब्दस्वरूप है । वह किसी-न-किसी वाच्य का वाचक या निरूपक है । अतः नय का अर्थ ही निरूपक या निरूपण (भाववाची) सिद्ध होता है । आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज ने यत्र-तत्र इसे कर्ता के रूप में प्रयुक्त किया है । सारांश यह है कि 'नय एवं निरूपण कर्ता । नय की परिभाषा भी है 'नयतीति नयः' । 2. कर्म-कारक - 'नय निरूपणं' । जहाँ नय को निरूपित किया जाता है, नय का स्वरूप बताया जाता है वहाँ नय कर्म-कारक के रूप में स्वीकार करने योग्य है । जहाँ निश्चय-व्यवहार नय को आचार्य ज्ञानसागरजी ने व्याख्यायित किया है ऐसे अनेकों स्थल उनके वाङ्मय में विद्यमान है। 3. करण-कारक - 'नयेन निरूपणं ।' नय के द्वारा निरूपण । आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने इस विभक्ति का बहुधा प्रयोग किया है । निश्चयनयेन अर्थात् निश्चय नय की अपेक्षा व व्यवहारनयेन अर्थात् व्यवहार नय की अपेक्षा । ठीक ही है नय की समीचीनता भी अपेक्षा से ही है । 4. सम्प्रदान-कारक - 'नयाय निरूपणं ।' नय के लिए निरूपण । जहाँ नय ही मुख्य हो अतिथि की तरह और वही इष्ट हो, उसके लिए या उसकी सिद्धि हेतु निरूपण हो वहाँ नय सम्प्रदान के रूप में प्रकट होता है । आचार्य महाराज के वाङ्मय में किन्हीं-किन्हीं स्थलों पर नय ही अभीष्ट के रूप में प्रकट है। 5. अपादान - 'नयात् निरूपणं ।' नय से निरूपण । आचार्यश्री के व्याख्यान में इस रूप में भी नय की उपलब्धि होती है । वहाँ उनका कथन नय स्वरूप में से निर्गमित होता हुआ दृष्टिगत होता है । 6. सम्बन्ध - षट् कारक में सम्बन्ध सम्मिलित नहीं है । विभक्ति तो मान्य है ही। 'नयस्य निरूपणम् ।' अर्थात् नय का निरूपण । पूज्य ज्ञानसागरजी महाराज के वर्णन शिल्प में यह प्रायः स्पष्ट ही है । नय स्वरूप का विवेचन, नय का उद्देश्य, परिभाषायें व्युत्पत्तियाँ आदि इसके अन्तर्गत हैं । नय तो अनेकांत का भेद ही है । अतः नय का निरूपण अनेकान्त अथवा जैनशासन-जिनवाणी का ही निरूपण है । 7. अधिकरण - 'नये निरूपणम्' । अर्थात् नय में प्रवेश कर व्याख्यान करना । यह बात सर्वत्र ध्यान में रखने योग्य है कि यदि ज्ञानी व्यक्ति, आगम का वेत्ता, गुणस्थान मार्गणास्थानों के स्वरूप को समझनेवाला व्यक्ति नय-संसार में या नय-चक्र में प्रवेश करता है तो स्व-पर हित योग्य वचन मणियों को निकाल लेता है । अन्यथा तो एकान्त को

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