Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Harsh Mahakavi, Sanadhya Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi

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Page 17
________________ ( १७ ) (१) भोजराज ( ११वीं शती ) के 'सरस्वती-कण्ठाभरण' में 'नषधीयचरित' के श्लोक उदाहरण-स्वरूप उद्धृत हैं। इस मत का प्रतिपादन डॉ० हाल ने किया था। (२) वाचस्पति मिश्र ( ११वीं शती ) ने श्रीहर्ष के 'खण्डन-खण्डखाद्य' का खण्डन किया है। ( ३ ) सायणमाघव (चौदहवीं शती का आरंभ) ने अपने 'शंकर-विजय' (१५।७२, १४३, १५७ ) महाकाव्य में 'बाण, मयूर, उदयन और श्रीहर्ष के शंकराचार्य द्वारा पराजय का उल्लेख किया है, जिससे श्रीहर्ष शंकराचार्य के समकालीन ठहरते हैं। (४) अनेक स्थलों पर स्पष्ट दोष होने के कारण राजशेखर का कथन विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। (ख) दूसरा मतवाद प्रो० एफ० एस० ग्राउस का है। इन्होंने चन्द कवि के 'पृथ्वीराजरासो' को आधार मानते हुए कहा है कि चंद १२वीं ईशवी शती के अंतिम भाग में हुए थे, अतः यदि राजशेखर का कथन ठीक है तो श्रीहर्ष ( १२ वीं शती ) और चन्द समकालीन हुए और चंद को उनसे भली भांति परिचित होना चाहिए। परन्तु चन्द ने अपने पूर्व-जातों का उल्लेख करते हुए नलचरित-प्रणेता श्रीहर्ष को कालिदास से पूर्व माना है । डाक्टर बूलर ने इन सबका समाधान इस प्रकार किया : (१) वाचस्पति नामक किसी विद्वान् ने 'खण्डन-खण्डखाद्य' का खण्डन तो किया है, परन्तु ये वाचस्पति मिश्र कौन-से हैं, यह जानना संभव नहीं है। वाचस्पति मिश्र एकाधिक हुए हैं । चार के नाम तो 'केटालागस कैटालागॉरप' ( यूरोप से प्रकाशित लेखकनाम सूची ) में मिलते हैं। इसके अतिरिक्त वाचस्पति मिश्र के 'खण्डनोद्धार' नामक ग्रन्थ का नाम प्राचीन वेदान्तियों द्वारा रचित ग्रन्थों की सूची में नहीं मिलता। विद्वानों ने यही माना है, इस ग्रन्थ के रचयिता कोई नवीन वाचस्पति हैं। वस्तुतः गंगेश उपाध्याय ने श्रीहर्ष के ग्रन्थ का खण्डन किया था। १३५० ई० में नवीन वाचस्पति ने इसी का खंडन किया था। (२) भोजराज के 'सरस्वती-कण्ठाभरण' में उद्धृत श्लोकों की अकारादिक्रम से एक सूची 'काव्यप्रकाश' के टीकाकार श्रीवामन झलकीकर ने बनायी हैं, उन्होंने नैषधीयचरित' के श्लोकों से उद्धृत श्लोकों की तुलना २ ने भू०

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