Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat Author(s): Merutungasuri Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 7
________________ नाभाक अर्थ-काळना प्रभावथी असंख्यवर्षोथी जनसमुदाय धर्म अने कृषि-वाणिज्यादि कर्मथी अजाण इतो. ते सर्वेने प्रभुए आ भरतक्षेत्रमा अवतरीने धार्मिक अनुष्ठान तथा कृषि-वाणिज्य विगेरे व्यवहारिक क्रियाओ बतावी. आ प्रमाणे धर्म अने कर्म ए बन्ने पका| रना मार्ग समजावी अनीति मार्ग नो तद्दन लोप कर्योः // 16 // . आदौ स पाणिग्रहणं विधाय, शतं सुतानां च विभज्य राज्यम् / भुक्त्वा सुखं नीतिपथं विधाय, तप्त्वा तपो ज्ञानमनन्तमाप // 17 // . | अर्थ-पहेलां तेमणे सुनंदा अने सुमंगला नामनी चे कन्याओ साथे विवाह करी, सांसारिक सुख भोगवी, नीतिमार्ग प्रवर्तावी, भरत बाहुबलि विगेरे पोताना सो पुत्रोने जुदुं जुईं राज्य वहेंची आपी दीक्षा ग्रहण करी. त्यार पछी अनेक प्रकारना दुस्सह तप तपी केवलज्ञान प्राप्त कर्यु // 17 // ततः स धर्म दशधोपदिश्य, प्रबोधयन् भारतभव्यसत्त्वान् / शैले सुराष्ट्राभरणेऽधिरुह्य, क्वचित प्रियालुद्रुतलं सिषेव // 18 // . __ अर्थ-त्यार बाद प्रभु श्रीआदीश्वर क्षमादिक दस प्रकारना धर्म नो उपदेश करीने भारतवर्षना सर्व प्राणीवर्गने प्रतिबोध करता है यका सौराष्ट्र (सोरठ) देशना आभूषणतुल्य श्रीशत्रुजय पर्वतपर चडीने रायणवृक्षनी नीचे ध्यानारूढ थया // 18 // श्रीपुण्डरीकं गणनायकं श्री-प्रभुः पुरस्कृत्य तदेत्यवादीत। इदं महातीर्थमनाद्यनन्तं,कालेन सङ्कोचविकोचधर्मि Gunratnasuri M.S. Jun Gun AaradhakPage Navigation
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