Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ भक्तदत्तां गृहीत्वा गां, सोऽन्त्ययामेचलंस्ततः।गो-पत्नो-पुत्रयुक्तेन, दुष्टेनाऽघाति भानुना // 18 // नाभाका चरित्रं कयु, तेवामां ते दुष्ट भानुए आवीने गाय, पत्नी अने पुत्र सहित मारीनाख्यो // 183 // ततः पापो पलाय्याऽगाद, गडावर्ते यदा तदा / शीतता सायमद्राक्षीत, कायोत्सर्गस्थितं मुनिम् // 18 // // 45 // 6 अर्थ-त्यांथी महारौद्र अध्यवसायी भानु नासीने गंगाने कांठे पोताने स्थाने चाल्यो गयो, गंगाने कांठे सायंकाले शियाळानी ठंडी ऋतुमां एक मुनिराजने काउसग्ग ध्याने उभा रहेला जोया // 184 / / अहो! कियच्चिरं कष्ट-मसावत्र सहिष्यते? / इति विस्मयवांस्तस्थी, तत्र यामचतुष्टयम् // 185 // 8 अर्थ-शियाळानी कडकडती ठंडीमां सायंकाले काउसग्ग ध्याने उभा रहेला महात्माने जोइ भानु विचार करवा लाग्यो के-'अहो! आ मुनिराज केटलो वखत आवा प्रकारचें कष्ट सहन करशे ?' एम आश्चर्ययुक्त बन्यो छतो त्यांज रात्रिना चार पहोर रह्यो / / 185 / / प्रातः स पारितोत्सर्गः, प्रणम्याऽप्रच्छि भानुना / किं कार्य प्राज्यराज्येन, यदेवं तपसे तपः?:१८६॥ अर्थ-पातः समये मुनिए काउसग्ग पार्यो, त्यारे भानुए नमस्कार करीने पूछयु के-महाराज ! शुं तमारे कोइ मोटुं राज्य मेळ- II वq छे के जेथी आवी घोर अने असह्य तपश्चर्या करो छो?' // 186 / / मुनिः प्रोचे न राज्येन, कार्य नरकहेतुना / किन्तु मोक्षकृते सर्व-साधुभिस्तप्यते तपः // 187 // MAD.Gunratnasun M.S. ECEOकाका SSSSS Jun Gun Aaradha

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