Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ चरित्रं // 43 // " अर्थ-ते दरम्यान तेज केवली भगवान् के जेमणे अयोध्या नगरीमा पर्षदामां कहेलो चन्द्रादित्यना पूर्वभवनो वृत्तान्त मुनिराजे नाभाक सांभळ्यो हतो, तेओ चित्रपुरी नगरीमां पधार्या. केवली भगवाननुं आगमन सांभळी राजा अने मुनिराज ते कुंभार सहित केवली " भगवानने वंदन करवा माटे गया / / 173 // // 43 // खरस्वरूपं भूपेन, पृष्टः केवल्यथाऽखिलम् / समुद्रसिंहवृत्तान्त-मुक्त्वा मूलात् पुनर्जगौ // 174 : दि. अर्थ-ते केवली भगवानने वंदन करी राजाए गधेडानुं स्वरूप पूछ्यु, त्यारे केवली भगवाने समुद्रपाल अने सिंहगें समस्त वृत्तान्त / | आदिथी अंत सुधी का, अने जणाव्यु के-॥१७४॥ सिंहजीवः सको भुक्त्वा, संसारे घोरवेदनाः / पुरेऽत्रैवाल्पकर्मत्वात्, षट्कृत्वोऽथ खरोऽजनि // 175 // अर्थ-ते सिंहनो जीव संसारमा तीव्र वेदनाओ भोगवी, आज नगरमां अल्पकर्मपणाथी छ वार गधेडो थयो // 175 // भवे सप्तमके भूत्वा, त्रीन्द्रियोऽसौ ततः पुनः / खरोऽवशिष्टकर्मत्वात, षटकृत्वोऽत्र पुरेभवत // 17 // अर्थ-त्यार बाद सातमा भवमां ते द्रिय थइ, अवशेष रहेला कर्मथी पाछो छ वार आज नगरमां गधेडो थयो // 176 // - सहस्रा द्वादशाऽनेन, देवद्रव्यं विनाशितम् / तत्कर्मशेषतस्तावत्, कृत्वाऽसावीदृशोऽजनि // 177 // अर्थ-आ सिंहना जीवे बारहजार सोनया देवद्रव्यनो विनाश कर्यो हैनो, ते कर्मना शेषथी ते तेटलीवार नीच भवमां उत्पन्न थयो छे / 177 / प्रतिजन्माऽद्रिशृङ्गेऽस्मिन्, कर्मकार्यकृते सदा / चटनाभ्यासतोऽत्राद्री, स्वयमेव चटत्यसौ // 17 // Jun Gun Aaradhak Gunratnasun M.S

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