Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 42
________________ चरित्र 496 // 41 // प्रभावथी आ भवमां तने श्रेष्ठ राज्य प्राप्त थयुं छे, अने दयागुणथी उत्तम रूप मळ्युं छे. पण पूर्वे तुं कांतिपुरी नगरीमां रुद्रदत्तनो सोम नाभाकाला ना मनोपुत्र थयो हता, ते भवमां तें देवद्रव्यरूप चंदननुं शरीरे विलेपन कर्यु हतुं, तेथी आभवमा तारा शरीरे दुष्ट कोढ रोग थयो छे" // 164 // | श्रुत्वेति भूपतिर्भीतः, प्रणिपत्य यतेः पदौ / बभाषेऽस्मान्महापापादू, मुने! मोचय मोचय // 165 // 18 अर्थ-आ प्रमाणे मुनिना मुखथी पोताना पूर्वभवनो संबंध सांभळीने राजा पापथी भय पाम्यो, अने मुनिना चरणकमळमां पडी गद् 6 गद स्वरे बोल्यो के-'हे कृपासिंधो ! मने आ महान् पापथी छोडावो छोडावो // 135 // . परमेष्ठिमहामन्त्रं, नृपायोपादिशन्मुनिः / तस्यार्थं च प्रभावं. च, विधिं च स्मरणेऽखिलम् // 166 // अर्थ-मुनिए राजाने पंचपरमेष्ठीरूप महामंत्रनो उपदेश कर्यो, तथा पंचपरमेष्ठीनुं ध्यान करतां तेनो अर्थ प्रभाव अने विधि सर्व सारीरीते समजाव्या // 166 // देवस्वपातकाद देव-प्रासादस्य विधापनात् / मुच्यते जन्तुरित्याख्यत्, प्रायश्चितं च शास्त्रवित् // 167 // अर्थ-तथा शास्त्रना जाणकार ते मुनिराजे देवद्रव्य विनाशनुं प्रायश्चित्त पण जणाव्यु के-'देवदव्यनो विनाश करनार पाणी देवमंदिर करवाथी ते पापथी छूटे छे // 167 // . .. अथ राजा पुरे स्वोये, स्थापयित्वाऽऽग्रहाद् यतिम् / यथोपदेशमारेभे, महामन्त्रस्मृति ततः // 16 // अर्थ-त्यारबाद राजाए मुनिराजने अत्यन्त आग्रह करी पोताना नगरमा राख्या, अने तेओश्रीए जेवी विधिए उपदेश आष्यो ते AAAAAEECCA % RAC Gunratnasuri M

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