Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ SECSAGE चरित्र // 49 // . सर्वोत्कृष्टं तपः प्राय-श्चित्तमेतदुदीरितम् / विशेषस्तु तीर्थहत्या-कृतां तीर्थविधापनम् // 201 // 141 नाभाक है। विशिष्टाभिग्रहाः प्रोक्तं, प्रायश्चितं चरन्ति ये / शत्रुजयादितीर्थेषु, ते मुच्यन्तेऽखिलैनसा // 202 // . | अर्थ-जेओ उपर कहेलं प्रायश्चित विशिष्ट प्रकारना अभिग्रहो लइ शत्रुजयादि तीर्थोमां जइ आचरे छे, तेओ समग्र पापथी मुक्त थाय छे / / इति श्रुत्वा नृपो दुर्ग-प्रवेशनियम ललौ / आकार्य सर्वलोकं च, तत्रैवाऽतिष्ठिपत् पुरम् // 2034 . 18 अर्थ-आ प्रमाणे श्रीयुगंधरसूरिनो उपदेश सांभळी तेज वखते नामाकराजाए किल्लामा प्रवेश करवानो नियम ग्रहण कर्यो, अने 4 | सर्व प्रजावर्गने बोलावी त्यांज नगर वसाव्यु // 203 // स्थापयित्वा गुरुंस्तत्र, जग्राहोऽभिग्रहानिति / यावद्यानां विधायाऽत्रा-यामि तावत् क्षितौ शये // 20 // P अब्रह्म दधि-दुग्धे च, वर्जयामि क्रमादिदम / तीर्थ-ब्रह्मा-ऽपत्यहत्या-शुद्धय मेऽभिग्रहत्रिकम् // 205 // | परस्त्री मांस-मद्येच, यावजीवमतः परमात्यक्तानि नियमाएते, स्त्री-गोहत्याविमुक्तये // 206 // त्रिभिर्विशेषकं / अर्थ-गुरुमहाराजने पण त्यांज राखी तेओश्री पासे नामाकराजाए आ प्रमाणे अभिग्रहो ग्रहण कर्या-ज्यां सुधीमां हुं श्रीशत्रुञ्जय तीर्थनी यात्रा करी पाछो अहीं आq त्यां सुधी पृथ्वी पर शयन करीश. तीर्थ हत्यानी शुद्धि माटे यात्रा करीने पालो आयूँ त्यो सु बछAAAAEECRECE

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