Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ % A / पुनः प्राहः प्रभुभूपं, न पूर्वकृतकर्मतः। विमुच्येत क्वचित् कोऽपि, त्वमेवाऽस्य निदर्शनम् // 262 // नाभाक 8 अर्थ-वळी प्रभुए. राजाने कधु के-पूर्वभवमा उपार्जन करेला कर्मों भोगव्या सिवाय कोइ पण पाणी कदापि छूटी शकतो नथी, ते चरित्रं संबंधमां तुज पोते दृष्टांवरूप छे // 262 // // 62 // त्वया सिंहभवे यात्रा-ऽन्तरायोऽकारि बान्धवम् / धारयित्वा स विज्ञेयो, वृद्धः सोपानलोठकः // 236 // अर्थ-तें सिंहना भवमा तारा भाइ समुद्रपालने यात्रा करतां अटकावी अंतराय को हतो, अने तेथी ते अंतराय कर्म उपार्जन कयु हतुं, ते अंतराय कर्मज तने पहेले पगधीयेथी गबडावनार वृद्ध पुरुष जाणवो // 263 // & असौ नागस्य जीवोऽपि, चन्द्रादित्यभवे पुरा / क्षालिताऽखिलसत्कर्मा, सौधर्मेऽजनि निर्जरः // 234 // 181 अर्थ-वळी जे आ तारीसाथे देव आवेलो छे ते नागश्रेष्ठीनो जीव छे, तेणे पहेलां चद्रादित्यना भवपां पुण्यकर्म कडे समग्र पाप प्र-5 दक्षालन करी अत्यारे सौधर्मदेवलोकमां देवता थयो छे // 234 // 2 इति सीमन्धरस्वामि-मुखातौ चरितं निजम। श्रुत्वा प्रीतो जिनं नत्वा, शत्रुञ्जयमगच्छताम् // 265 // अर्थ-आ प्रमाणे सीमंधरस्वामीना श्रीमुखथी ते देव अने नामाकराजा पोतपोतानुं चरित्र सांभळी घणा हर्षित थया, अने ते प्रभुने वंदन करी श्रीशत्रुजय पर्वत उपर गया // 265 // . ... र तमुद्रपालन यात्रा करतां अटकावी अंतराय को इनो AR Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak

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