Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ अर्थ-चन्द्रादित्य देव पण सेनाना परिमाण जेटलं छत्र विस्तारतो, सद्गुरुमहाराज अने राजाना बन्ने पडखे चामरो वींजतो-२७४। नाभाक ल संवर्तक वायरा वडे रस्तामा आगळ आगळ कांटा विगेरेने दूर करतो, सुगंधी पाणी वरसावी मार्गनी धूल शांत करतो // 275 // 3 | ববি गंधथीं बहेकी रहेला पांच वर्णना दिव्य पुष्पोथी पृथ्वीने आच्छादित करतो, आगळ एक योजन प्रमाण उंची मोटी ध्वजा फरकावतो, // 65 // 18 // 276 // “आ गुरुमहाराज अने राजानुं अपमान करनारा स्वयं नाश पामशे, अने एमना चरणकमलने नमस्कार करनार लोकोने रा // 65 // | महालक्ष्मीनी वृद्धि थशे" || 277 // एवी आकाशवाणी साथे गगनमां दुंदुमिनो नाद करतो छतो गुरुमहाराजनी भक्ति करतो हतो, | तेमज राजानुं सान्निध्य करतो हतो / / 278 // इत्थं प्रतिपदं नैक-भूपैः प्राभूतपाणिभिः। प्रवर्धमानभव्यश्री-नृपः प्रापन्निजं पुरम् // 279 // 8 अर्थ-आवीरीते मार्गमां चालतां पगले पगले अनेक राजाओ हाथमा भेटणां लइ नाभाकराजानुं सन्मान करवा लाग्या, अने तेथी। वृद्धि पामती मनोहर लक्ष्मीवाळो राजा पोताना नगरमां आवी पहोंच्यो // 279 / / P गुरवोऽपि ततो दत्त्वा, श्रीमन्नाभाकभूपतेः / सम्यक्त्वमूलश्राद्धाणु-व्रतानि व्यहरन् भुवि // 280 // . अर्थ-त्यार बाद गुरुमहाराजे नाभाकराजाने सम्यक्त्वमूल श्रावकना अणुव्रत उचरावी शुद्ध श्रावक कर्यो, पछी गुरुमहाराजे बीजे विहार कर्यो __ अथ देवस्य सान्निध्याद्, वासुदेव इव स्वयम् / भूपालो भरतार्थस्य, त्रीणि खण्डान्यसाधयत् / / 281 // | अर्थ-त्यार पछी चन्द्रादित्यदेवनी सहायथी नाभाकराजाए वसुदेवनी पेठे अर्ध भरतना त्रणे खंड साध्या // 281 / / GOOKGALOCALCHALKAROSAREE SSC1-61 RECCAN GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak

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