Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 67
________________ / भूमिपतिसहस्राणां षोडशानां च मूर्धनि / आज्ञा संस्थाप्य राज्यं स्व-धर्म च समपालयत् // 282 // नाभाक, अर्थ-नाभाकराजाए सोळ हजार राजाओ उपर पोतानी आज्ञा भवर्तावीने सम्यक् प्रकारे पोताना राज्यनु अने धर्म पालन करवा लाग्यो॥ 4 चरित्रं - त्रिकालं देवमभ्यर्चन्, द्विसन्ध्यं सद्गुरुन्नमन्। षडावश्यककृत्यं च, तन्वन् राज्यफलं ययौ // 283 // अर्थ-राजाए त्रण काळ प्रभुनी पूजा,अने सांज सवार सद्गुरु महाराजने वंदन तथा छ आवश्यक कृत्य करतां राज्यनुं शुभ फळ मेळव्यु।२८३ प्रतिग्रामपुरं जैन-प्रासादास्तुङ्गतोरणाः। व्यधाप्यन्त नरेन्द्रेण, धर्मशालाः सहस्रशः // 284 // / 13 अथ-ते राजाए दरेक गाम अने शहेरोमां उंचा तोरणवाळा जिगमंदिरो बंधाव्या, तेमज हजारो धर्मशाला बंधावी // 284 // / साहिलोकपरद्रोह-पैशून्यकलिमत्सराः। निर्मूलं वारिताः सप्त-व्यसनानि विशेषतः // 285 // . अर्थ-वळी ते राजाए पोताना राज्यमां निंदा, परद्रोह, चाडी, कजीओ, ईर्ष्या विगेरे निर्मूल निवारण कर्यु, तथा सात व्यसनोनो है तो विशेष प्रकारे निषेध कर्यो / 285 // 8 मिथ्यात्वं पापमन्याय, विधत्ते मनसाऽपि यः / तस्य देवः स्वयं शिक्षा, दत्ते तत्क्षणमेव सः // 283 // अर्थ-तेना राज्यमा कोइपण माणस मिथ्यात्व पाप अने अनीति मनथी पण करतो तो तेने चन्द्रादित्य देव तेज क्षणे शिक्षा करतो॥ तद्देशवास्तव्यजना-स्ततः पुण्यैकबुद्धयः / राजवर्माऽनुवर्तन्ते, यथा राजा तथा प्रजाः // 287 // %ASESAR SEARRASSAGAR Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhal

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