Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ नाभाक चरित्रं SRISHRA // 52 // अर्थ-श्रीशत्रुजय तीर्थ दृष्टिए पडयु के तुर्त पोताना सैन्यने त्यांज स्थापन करी, शरीरे पवित्र थइ, तीर्थ सन्मुख केटलाएक डगला आगळ जइ, सर्व संघ सहित सिंहासनपर अरिहंत प्रभुनी प्रतिमा पधरावीने ते प्रतिमानी पखाळ करी पूजानी सर्व सामग्री वडे वि घिपुरःसर पूजा करी // 214-215 // . // 52 // .. स्वर्णरूप्ययवै रत्न-स्थालेऽथो मङ्गलाष्टकम आलिख्याऽष्टोत्तरशत-वृतैः सानन्दमस्तवीत् // 216 // 18 अर्थ-त्यार बाद रत्नना थाळमां स्वर्ण अने रूपाना जवोथी आठ मंगळ आलेखीने हृदयना उल्लासथी एकसो आठ श्लोको वढे भावपूर्वक प्रभुनी स्तुति करी // 216 // शक्रस्तवेन वन्दित्वा; सिद्धादि चाऽथ सद्गुरून् / नत्वा स्वर्णमणिरत्न-मुक्ताभिस्तानवोवधत् // 217 // अर्थ- त्यार बाद नमुत्थुणं वडे सिद्धाचलने वांदी, गुरु महाराजने नमनकरी तेओने स्वर्ण, मणि, रत्न अने मोतीवडे वधाव्या।२१७॥ दत्त्वा यथेच्छमर्थिभ्यो, दानं मिष्टान्नभोजनैः / अतूतुषत् सर्वलोकान्, धार्मिकांश्च विशेषतः // 218 // 6 अर्थ-याचक जनोने इच्छित दान आप्यु, तेमज मिष्टान्न भोजन वडे सर्व लोकोने संतुष्ट कर्या, तेमां पण धार्मिक पुरुषोनी तो विशेष प्रकारे आदर सत्कार पूर्वक भक्ति करी तेओने संतोष उपजाव्यो / 218 // र ततोऽतिक्रान्त शेषाऽध्वा, पुरस्कृत्य गुरुं नृपः। रेजे चटन् गिरिं मुक्त्य, प्रस्थानं साधयन्निव // 19 // 18/अर्थ-त्यार पछी बाकीनो मार्ग उल्लंघन करी गुरुमहाराजने आगळ करी जाणे मुक्तिने माटे प्रस्थान साधनो होयनी! तेवी रीते AARE Cunanan MS Jun Gun Aaradhak

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