Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 59
________________ चरित्रं ते महापुरुषे फळ खाधु नहीं तेम जळ पण पीई नहीं // 243 // नाभाक तया सह महःस्तोम-व्योमव्यापिनि मन्दिरे / आश्चर्यपरिपूर्णान्तः, स्वच्छेन मनसा ययौ // 25 // अर्थ-त्यारबाद अश्चर्यथी पूर्ण बनेला हृदयवाळो नामाक आकाशमां व्यापी रहेला तेमज झळहळाट वाळा एक महेलमां ते स्त्री // 54 // साथे स्वच्छ चित्ते गयो / 244 // स तत्र चित्रकृपाः, सारशृङ्गारहारिणीः। हरिणाक्षीनिरैक्षिष्ट, विलसन्तीः सहस्रशः // 245 // अर्थ-पोताने अपरिचित ते नूतन प्रासादमां नामाकराजाए आश्चर्य उत्पादक स्वरूपवाळी, उत्कट श्रृंगारथी चित्तने आकर्षण कर नारी, मनोहर विलास करती हजारो सुंदरीओने जोइ // 245 // 12 तासां मध्यादथोत्थाय, स्वामिनी हंसगामिनी। योजितांजलिरभ्येत्य, सानुरागमदोऽवदत // 246 // 18. अर्थ-ते मनहरणी सुंदरीओमांथी तेओनी स्वामिनी एक अग्रेसर स्त्री ऊठीने हंसनी जेवी मंद मंद गति करती नामाकराजा पासे आवी, अने बे हाथ जोडी प्रेमपूर्वक बोली के-॥ 246 // अस्मदीयेन भाग्येन, समेतोऽसि गुणोदधे?। स्त्रीणां राज्यमिदं विद्धि, योऽत्रैति पतिरेव नः // 247 // अर्थ-"हे गुणसमुद्र! तमे अमारा भाग्यथीज अहीं पधार्या छो,आ स्त्रीओर्नु राज्य छे,अने जे अहीं आवे छे तेने अमे पति तरीकेज मानीए छीए / - श्रुत्वेति नृपतिर्दध्यौ, सङ्कटान्तरमागतम् / मौनमेवाऽत्र मे श्रेयो, मौनं सर्वार्थसाधनम् // 248 // RELA Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak

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