Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 43
________________ H // 42 // प्रमाणे पंचपरमेष्ठी महामंत्रनुं निरंतर ध्यान करवानो आरंभ कर्यो // 16 // नाभाक षड्भिर्मासैनॅपस्याऽभूत्, कायः काञ्चनकान्तरुक् / राज्यं गजाश्वकोशादि-वृद्धया भेजे विशालताम् // 169 // चरित्र अर्थ-पंचपरमेष्ठीनं ध्यान करतां छ मासमां चन्द्रादित्यनुं शरीर सुवर्ण सदृश मनोहर कांतिवाडं थइ गयु, अने हाथी घोडा तथा / // 42 // | भंडार विगेरेनी वृद्धि थवाथी राज्य पण विशाल थइ गयु // 169 // शीर्षेऽथ चित्रकूटस्य, प्रासादं परमेशितुः / सुपर्वपर्वतोत्तुङ्ग-शृङ्गं प्रारभयन्नृपः // 170 // अर्थ-त्यारबाद चन्द्रादित्य राजाए चित्रकूट पर्बतना शिखर उपर परमात्मा जिनेन्द्रप्रभुनु मेरु पर्वत समान उंचा शिखरवाळ दे रासर बंधाववानी शरुआत करी // 17 // IN मुनिपावे निविष्टस्य, मापतेः पुरतोऽन्यदा / प्रदर्शयन् खरं कश्चित्, कुम्भकारो जगाविति // 17 // 15 18 अर्थ-एकदिवस मुनिराज पासे राजा बेठो हतो, तेवामां तेनी आगळ एक गधेडाने बतावता कोइ कुंभारे आवीने का के-॥१७१।। राजन्नित्यं वहन् वारी, स्वयं शेले चटत्यसौ / को हेतुरिति भूपोऽपि, श्रुत्वा पप्रच्छ तं मुनिम् // 17 // II अर्थ राजन ! आ गधेडो हमेशां पाणीने वहन करतो आ पर्वत उपर पोतानी मेळे चढे छे तेनुं शुं कारण हशे ?. राजाए पण आ वृत्तान्त सांभळी आश्चर्यचकित थइ मुनिराजने पूछयु // 172 // स एव केवली तावत्, तत्रागाद् मुनि भूपती / तेन कुम्भकृता युक्ती, नन्तुं तमथ जग्मतुः // 173 // SEAceca Gunratrasuri M.SI Jun Gun Aaradhak

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