Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 15
________________ चरित्रं जम्बूद्वीपस्य भरते, सम्प्रतिस्वामिवारके / उपाम्भोधि तामलिप्ती-नगयाँ भ्रातरावुभौ // 44 // नाभाक समुद्र-सिंहौ ज्येष्ठस्तु, निर्मलः पुण्यवानृजुः / विपर्यस्तः कनिष्ठश्च, बदरीकण्टकाविव // 45 // KI अर्थ-ओगणीश कोडाकोडी सागरोपम काल पहेलां, अतीतचोवीशीमां जम्बूद्वीपना भरतक्षेत्रने विषे संपतिस्वामी नामना तीर्थ॥१४॥ से करना वारामां, समुद्रतट समीपे तामलिप्ती नगरीमां समुद्र अने सिंह नामना बे भाइ रहेता हता. तेओमां मोटो भाइ समुद्र निर्मल | चारित्रवाळो पुण्यवान् अने सरलहृदयी हतो, पण नानो भाइ दुष्ट आचरणवाळो महापापी अने क्रूरहृदयी हतो. जेम बोरडीना कांटाओ | पैकी कोइ वक्र अने कोइ सीधी होयछे,तेम आ बन्ने भाइओमां मोटो भाइ सरल हतो, अने नानो भाइ वक्र हतो.॥४३-४४-४५॥131 भुवं खनभ्यां ताभ्यां स्व-गृहे स्थूणार्थ मन्यदा / चतुर्विंशतिदीनार-सहस्रनिधिराप्यत // . __ अर्थ-ते बन्नेए एक दिवस पोतानाघरनी अंदर थांभलो नाखवामाटे पृथ्वी खोदतां चोवीश हजार सोनामहोरथी भरेलो निधि प्राप्त कर्यो. | देवद्रव्यमिदं नाग-गोष्ठिकेन निधीकृतम् / इत्युक्तिगर्भ पत्रंच, ज्येष्ठो दृष्ट्वेत्यभाषत // 17 // RI अर्थ-तथा तेनी साथे एक पत्र नीकळ्यो. तेमां एवा भावार्थY लख्यु हतुं के–'आ देवद्रव्य नागनामना कुटुंबीए निधि तरीके बदायु छे' आ प्रमाणे लखेलो पत्र वांचीने ज्येष्ठ भ्राता समुद्रे पोतानो अभिप्राय जाहेर कयो के // 47 // गत्वा शत्रुञ्जये नाग-श्रेयसे दीयते ह्यदः श्रुत्वेति जायया नुन्नः, कनीयानित्यवोचत // 48 // .. अर्थ-'शत्रुजया जइने नागगोष्ठिकना पुण्यने माटे आ नीकळेल देवद्रव्य आपीए' / ए प्रमाणे मोटा भाइन वचन सांभळी BAO CAP Gunratrasuri MS Jun Gun Aaradhak

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