Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ SSESSAGE -29-54 15 अर्थ-हवे ज्यारे सोम योग्य उम्मरनो थयो त्यारे एक दिवस ते शिवना मंदिरमाथी देवनो भंडार चोरीने नासी गयो, तेनुं चोर | लोकोए हरण करी पारसीक देशमा वेच्यो // 141 // / तत्र वस्त्राणि रज्यन्ते, तस्य रक्तैस्ततोऽसकौ। पलाय्याऽम्भोधिमुत्तीर्य, व्रजन्नध्वनि कुत्रचित् // 142 // | ग्रामप्रवेशेऽभ्यायान्तं, मनिं मासोपवासिनम / निहत्य यष्टया लीन् वारान्, पापः पृथ्व्यामपातयत् // 14 // | अर्थ-पारसीक देशमां तेना लोही वडे वस्त्रो रंगावा लाग्या. आवी रीते आपत्तिमां आवी पडेलो ते सोम लाग जोइ त्यांथी नाठो, समुद्र उतरीने रस्तामा जतां कोइ एक गाम आव्यु. गाममा पेस्तां तेनी सन्मुख आवता मास उपवासवाला एक मुनीने ते पापीए | लाकडी वडे त्रण वार प्रहार करी जमीन उपर पाडी दीधा. // 142 थी 143 // चरित्रं 36 // 9 18 अर्थ- लाकडीना अतिशय प्रहारथी मुनिराज त्यांज मरण पाम्या. मुनिने मारो सोम त्यांथी नासतो हतो तेवामा रस्तामां कोटवाळोए र पकड्यो, पण त्यांना दयाल श्रावकोए करुणा लावी छोडाव्यो. त्यारवाद सोम त्यांथी पलायन करो जंगलमा चाल्यो गयो // 144 // मृत्वा दावाग्निनाऽरण्ये, सप्तमं नरकं गतः ! ऋषिहत्यामहापापं, तत्कालं स्यात् फलप्रदम् // 145 // अर्थ-अरण्यमां दावानळथी मरण पामीने सातमी नारकोमा गयो, कारण के मुनिहत्यानुं महापाप तत्काल फळ आपे छे // 145 // ____ सागराणि त्रयस्त्रिंश-तत्र भुक्त्वा महाव्यथाः / उद्धृतो घोरसंसारं,भ्रमित्वा हालिकोऽभवत् // 146 // EPSR24-7- -SASAR REGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Te!

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70