Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ चरित्रं // 22 // 15 रक्षण करो ' ए प्रमाणे बोलता जोइने // 79 // नाभाका विद्वेषिभूपतीन् सर्वान्, प्रोन्मुच्य निजपूरुषैः / अहो! किमिति साश्चों-ऽपृच्छत्तानेव भूपतीन् // 8 // अर्थ-पोताना उपर द्वेष करनार अने युद्ध करनार ते सर्व शत्रुराजाओने पोताना माणसो द्वारा छोडावीने 'अहो ! आशुं आश्चर्य // 22 // बन्यु ?' ए प्रमाणे ते राजाओने पूछयु // 8 // ते प्रोचुर्नाऽपरं विद्मो, विशेषं किन्तु सङ्गरे / अबध्यामहि दुबुध्या, युध्यमानाः स्वयं वयम् // 81 // 18 अर्थ-त्यारे सर्व राजाओए प्रत्युत्तर आप्यो के–अमे आम बनवानुं बीजं तो कांइ विशेष कारण जाणता नथी, परंतु दुष्टबुद्धिथी युद्ध करता अमे रणांगणमा स्वयमेव बन्धाइ गया छीए // 81 // पर भवत्प्रसादेन, च्छुटिता नात्र संशयः / अतः स्वसेवकान् यावजीवं स्वोकुरु नोऽधुना // 82 // अर्थ-परंतु हे राजन् ! आपनीज कृपादृष्टियी अमे छुच्या छीए एमां संशय नथी. माटे हवे आप अमो सर्वने जीवंत पर्यंत पोताना है. सेवकपणे स्वीकारो / / 82 // ___ इत्युक्त्वा सेवकीभूतै-स्तैरेवाऽसौ परिवृतः / स्वपुरं प्राविशत् प्राज्य-प्रवेशोत्सवपूर्वकम् // 83 // है अर्थ-आवीरीजे सेवकतरीके पोताने वश थयेल सर्व राजाओथी परिवरेल ते समुद्रपाल राजाए मोटा उत्सवयुक्त पोताना नगरमा प्रवेशकों सभ्यान सभायामाभाष्य, विसृज्य च नृपान सौ / सौधान्तः पूज्यन्, ददर्श व्यन्तरं पुरः // 84 // Jun Gun Aaradhak ONASAAEECIES. - C-66 Gunnatrasur MS

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