Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ चरित्र . स.तत्र दन्तिवधकै-दन्तवृन्दान्यथाऽऽनयत् / पापद्रव्येण यत् पापे-ज्वेव बुद्धिः प्रजायते :112 // नाभाक द अर्थ-ने जंगलमा हाथीना वध करनार माणसो द्वारा हाथीदांत मंगावीने खरीद कर्या. खरेखर शास्त्रकारोए सत्यज वचन कयुं छे के–'पापथी संचय करेल धनथी पापकारी अधम कृत्यो करवानीज बुद्धि उत्पन्न थाय छे.' आपणामां एक लौकिक सादी कहेणी छे // 29 // 5 के-'जेवो आहार तेवो ओडकार.' माटे सुज्ञ जनोए नीतियुक्त धन उपार्जन करवामांज प्रयत्नशील बनवु जोइए. श्रावकने प्रथम द्र मोक्षमार्ग तरफ दोरवनार मार्गानुसारीना पांत्रीशगुणो पैकी 'न्यायथी द्रव्य मेळवद् ' ए प्रथम गुण छे. अने ए गुण मेळववा माटे व दरेक मनुष्ये पोताना विचार मक्कम करवा जोइए के "मारा जीवननों सुखपूर्वक निर्वाह करवा माटे नीतिभागथी द्रव्य मेळवीश." | आ जीवनमूत्र दरेके पोताना हृदयपट्ट उपर सुवर्णाक्षरे कोतरी राखq जरुरतुं छे // 112 // भृत्वा चत्वारि यानानि, दन्तेर्वारिधिवर्त्मना / मुक्त्वा कुटुम्बं तत्रैव, सुराष्ट्रांप्रति सोऽचलत् // 113 // 18 | अर्थ- हवे ते सिंहे त्यां हाथीदांत खरीद करी चार वहाण भर्या, अने पोताना कुटुंबने त्यांज मूकी समुद्र मार्गे सोरठ देश तरफ ते चाल्यो 1134 ती समुद्रंक्षेमेण, सुराष्ट्रातटसंकटे / भग्नानि तानि यानानि, न हि श्रेयोऽतिपापिनाम् // 114 // अर्थ-समुद्रमार्गे जता जता ठेठ सुधी जलमार्ग कुशलतापूर्वक ओळंग्यो, पण सोरठ देशना किनारा नजीक आवतां अकस्मात् 5 कोइ खराबा साथे अथडावाथी चारे वहाण भांगी गयां; खरेखर पापकर्मथी आजीविका चलावनार अति पापी पुरुषोनु कदापि कनल्याण यतुं नथी॥ 114 // ..... Ac Cunratnasur M.S 5-5A525A5% समुदत खरीद करीरिधिवर्मन राख जरुरत Jun Gun Aaradh IM

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