Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ ततः सिंहो विपद्याऽऽद्य-नरकं तत्र वेदनाः / विषयोध्धृत्य संजातः, सिंहो हिंसापरायणः // 115 // नाभाक 3 अर्थ-चारे वहाण भांगी जवायी सिंह समुद्रमां डूबी मरणने शरण थयो, अने पहेली नारकीमा उत्पन्न थयो. त्यां अत्यंत तीव्र वेद- चरित्रं नाओ सहन करी, आयुष्य पूर्ण थतां त्यांथी नीकळी तिर्यंचना भवमां हिंसाने विषे तत्पर एवो सिंह थयो // 115 // // 30 // व आद्य गत्वा पुनः श्वभ्रं , जज्ञे दुष्टसरीसृपः। द्वितीयनरकं भुक्त्वा , दुष्टदक्षी बभूव सः // 116 // अर्थ-सिंहना भवमां पण अनेक प्रकारनां हिंसादि कृत्यो करी फरी पहेली नारकीमा गयो. त्यांथी नीकळी दुष्ट सापपणे उत्पन्न | थयो. त्यांथी बीजी नारकीमां गयो, त्यां पण अपार दुःखो भोगवी दुष्ट पक्षी थयो. // 116 // 6 तृतीयनरकं प्राप्य, दुष्टसिंहोऽभवद् वने / चतुर्थनरकं गत्वा सर्पोऽजायत दृग्विषः // 117 // + अर्थ-त्यार बाद त्रीजी नारकीमा गयो. त्यांथी वनमां दुष्टसिंह थयो. सिंहनुं आयुष्य पूर्ण करी चोथी नारकोमा गयो, त्यां कष्टकारक दुःखो भोगवी दृष्टिविष सर्प थयो. // 117 // पञ्चमं नरकं लब्ध्वा, चण्डालस्त्री ततोऽजनि / अवाप्य नरकं षष्ठ-मजनिष्टाऽर्णवे तिमिः // 18 // 13/ अर्थ त्यांथी पांचमी नारकीमा गयो, त्यारबाद चंडालनी स्त्री थयो. तदनन्तर छठी नारकीमा गयो. त्यांथी समुद्रमा मत्स्य थयो.. [4] सप्तमं नरकं गत्वा मत्स्योऽजायत तन्दुलः। पुनः सप्तममेवाऽगा-नरकं दुःखसागरम् // 19 // EGOROSCARA-5 54 40- 4 R AC Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradh

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