Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 33
________________ 32 // 15 हेवानो आरंभ कर्यो // 123 // . नाभाक उत्सपिण्यवसर्पिण्यो-भरतैरवतक्षितौ / प्रत्येकं किल जायन्ते, शलाकाः पुरुषा अमी // 124 // चतुर्विंशतिरहन्त-स्तथा द्वादश चक्रिणः / विष्णुप्रतिविष्णुरामाः, प्रत्येकं नवसङ्ख्यया // 125 // र अर्थ-भरतक्षेत्र अने ऐरवतक्षेत्रमा उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काळमां त्रेसठ त्रेसठ शलाकापुरुषो थाय छे, अने ते आ प्रमाणे चोवीश तीर्थकर, बार चक्रवर्ती, नव वासुदेव, नव प्रतिबासुदेव अने नव राम (बलदेव) // 124 थी 125 // 8 एतेषु पूर्व श्रीरामो राज्यं न्यायेन पालयन् / कृपया निःस्वलोकानां, न्यायघण्टामवीवदत् // 126 // है अर्थ-एसठ पुरुषोमांपहेलांश्रीराम नीतिपूर्वक राज्यतुं पालन करतो हतो, अने गरीब मजा उपर दयादृष्टि राखी न्यायनो डंको वजडाव्यो हतो एकदा कुर्कुरः कश्चि-निविष्टो राजवर्त्मनि / केनचिद् विप्रपुत्रेण, कर्करेणाहतः श्रुतौ // 127 // | अर्थ-तेना राज्यमा एक दिवस जाहेर रस्ता उपर एक कूतरो बेठो हतो, ते कूतराने कान उपर कोइ ब्राह्मणना छोकराए कांकरो | 6 फेंकी घायल को // 127 // __श्वा निर्यद्रुधिरो न्याय-स्थानं गत्वा निविष्टवान् / भूपेनाहूय पृष्टोऽवग्, निरागाः किमहं हतः? // 128 // अर्थ-बडेता लोहीथी खरडायेल ते कूतरो राजाना न्यायमंदिरमा जइ बेठो. राजाए तेने बोलावीने राजसभामां आववान कारण पूच्यु, त्यारे तेणे कधु के-'हुँ निरपराधी छतां मने ब्राह्मणना छोकराए केम मार मार्यो ? ||128 // SAARCANEARSA RWAD.Gunratnasun M.S. Jun.Gun Aaradha

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