Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ चरित्रं स तत्र गत्वाऽऽगत्याथ, प्रोचे सिंहोऽस्ति तत्र न।प्रपलाय्य गतः क्वापी-त्यापि शुद्धिः पुरे न तु // 103 // दि अर्थ-ते माणस तामलिप्ती नगरीमा जइने पाछो आव्यो, अने कछु के-'सिंह तामलिप्ती नगरीमां नथी, अने नासीने क्यां गयो छे तेनी पण तपास करवा छतां शोध मळी शकी नथी' // 103 // // 27 // न्यायेन पालयन राज्यं, प्रत्यब्दं स्वकुटुम्बयुक्। यात्रा अनेकशः कुवे-श्चिरं सौख्यममुक्त सः॥१०४॥ अर्थ-समुद्रपाल नीतिथी पोताना राज्यनुं पालन करवालाग्यो, अने प्रत्येक वर्षे शत्रुजयादि तीर्थोनी अनेक यात्राओ करतो छतो घणो काळ सुख भोगववा लाग्यो // 104 // अभूतपूर्व श्रुत्वा त-द्वैरनिर्यातनं नृपाः / कम्पमानाः साभिमाना, अप्यस्मै नेमिरे स्वयम् // 105 // अर्थ-भिन्न भिन्न देशना राजाओ अभिमानी अने पराक्रमी होवा छतां पण पूर्वे कदापि नहीं अनुभवेलो बैरनो बदलो सांभळी तेना पुण्य प्रतापथी कंपायमान थता पोतानी मेळेज नमवा लाग्या // 105 // राज्ये न्यस्य सुतं ज्येष्ठं, लक्ष्मी कृत्वाथ पुण्यसात्। समुद्रपालो वैराग्याद, ब्रतमादत्त सद्गुरोः // 106 // अर्थ-पवित्रात्मा ते समुद्रपाल राजाए नीतिपूर्वक घणा वर्ष राज्य कयु. छेवटे पोताने वैराग्य थवाथी मोटा पुत्रने राज्य उपर स्था-15 पन कों, अने पुण्यार्थे सारां कार्योमां लक्ष्मीनो व्यय करी सद्गुरु पासे दीक्षा ग्रहण करी // 10 // अथैकविंशतिघस्नान, साधिताऽनशनः शमो / जज्ञे सर्वार्थसिद्धाख्ये, विमानेऽनुत्तरे सुरः // 107 // VIAC Gunratnasuri M.S. LOCACROCEECTORSCIENC E Jun Gun Aaradhak

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70