Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 25
________________ श्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्यं, शृण्वन्नेकाग्रमानसः / मृत्वा तद्धयानतोऽभृवं, व्यन्तरोऽत्रैव पर्वते // 90 // युग्मम्।। नाभाक अर्थ-त्यारपछी यथायोग्य कार्यों वडे धन मेळवी आजीविका चलावतो हुँ मरण समये दुःखपूर्वक रात्रिमा नजीकना पाडोशमा र- चरित्रं त हेती एक घरडी डोशीना मुखद्वारा कोमल स्वरथी कहेवाता श्रीशत्रुजय तीर्थ ना अद्भुत माहात्म्यने एकाग्रचित्ते सांभळतो छतो मृत्यु | // 24 // 1 पाम्यो, अने श्रीशत्रुजयना ध्यानथी आज पर्बतने विषे व्यंतरदेव थयो छु. // 89 थी 90 // P // 24 // तत्र प्रजाक्षणे स्वीयं, नाम श्रुत्वा भवन्मुखात / स्मृत्वा च प्रर्ववृत्तान्तं.प्रीतचेता व्यचिन्तयम // 11 // 4 अर्थ-आ पर्बतने विषे पूजा समये तमारा मुखथी मारूं नाम सांभळीने पूर्बभवनो वृत्तान्त स्मरण करी मारुं चित्त घणु प्रसन्न थयु, अनेरा त में विचायु के-॥ 91 // साध्विदं विदधे देव-द्रव्यं यद्देवपूजने / व्ययितं तत् किमप्यस्य, सान्निध्यं विदधेऽधुना // 92 // अर्थ-आ राजाए देवपूजामां देवद्रव्यनो व्यय कर्यो ते घणुंज सारुं कर्यु, माटे एने हवे. कांइक सहायकारी थाउं // 92 // अतः सहागतेनैव, यन्त्रितास्ते मयाऽरयः। अल्पशक्तिः परं नाह-मन्यत्र स्थातुमीश्वरः॥ 93 // व अर्थ-एम विचार करी श्रीशत्रुजय तिर्थथी साथे आवेला में तमारा शत्रुओने दृढ बन्धनोथी बांधीलीधा हता. परंतु हुं अल्पशक्तिवाळो छु, तेथी मारा स्थान सिवाय अन्य स्थाने रहेवा समर्थ नथी // 93 // अतो याताऽस्मि तत्रैव, परं यात्राद्वयस्य मे / प्रत्यब्दं सुकृतं देयं, प्रपेदे सोऽपि तद्वचः // 94 // 121 ACCORIES Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak

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