Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________ // 12 // अर्थ-ते त्रीजी वखत जोवडावेला मुहूर्तनो दिवस आवतां पोतानी पटराणीने अकस्मात् महाव्याधि उप्तन्न थवाथी ते दिवसे पण नाभाक राजा नीकळी शक्यो नहीं. त्यारे फरीथी चोथी वखत नाभाक राजाए मुहूर्त जोवडाव्यु, पण ते मुहूर्त आवतां पोताना सैन्यमां तथा न देशमां बखेडो जागवानी शंकाथी ते वखते पण राजा श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा करवा माटे नीकळी शक्यो नहीं, अने चोथु मुहूर्त है / 12 // पण व्यतीत थइ गयु // 35 // 18 अहो ! पापी ममात्मेपि, निन्दन् स्वं पञ्चमं नृपः। मुहूर्तमाददे तच्च, परचक्रभयाद् गतम् // 36 // अर्थ-आ प्रमाणे श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा निमित्ते जोवडावेला चारे मुहूर्तो निष्फळ जवाथी, 'अरे! मारो आत्मा महा पापी छे के Kजेथी पवित्रतीर्थ श्रीशत्रुजयनी यात्रा करवा जतां आवी रीते विघ्नो आव्याज करे छे' ए प्रमाणे पोताना आत्मानी निंदा करता थका | राजाए पांच मुहूर्त कढाव्यु. पण कर्मसंयोगे ते मुहूर्त पण पोताना देश उपर बीजा राजाओना सैन्यो चडी आववाना भयथी वीती गयुं. एवं भूपो व्यतिक्रान्ते, यात्राया लग्नपञ्चके / हेतुमस्य कथं ज्ञास्या-मीति चिन्तातुरोऽभवत // 37 // अर्थ-आ प्रमाणे श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा करवा माटे ज्योतिषीओ पासे कढावेला पांचे मुहूर्तो व्यतीत थवाथी 'आवी रीते विघ्नो आवधान कारण हुँ केवी रीते जाणीश?' ए प्रमाणे राजा चिंतातुर थयो. // 37 // तावतोद्यानमायाताः, श्रीयुगन्धरसूरयः। इति विज्ञपयामास, भूपालं वनपालकः // 38 // अर्थ-एम विचार करे छे, तेटलामां वनपालके आवी राजाने वधामणी आपी के-उद्यानमां श्रीयुगंधरसूरि समवसर्या छे.॥३८ Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70