Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ चरित्रं अर्थ-कोइनी सेवा करी आजीविका चलाववी श्रेष्ठ छे, चाकर थइने रहेवू सारुं छे, भीक्षा मागी उदर पोषण कर, उत्तम छे, नाभाका अने छेवटे भूख्या मरी जवु पडे तो ते पण व्हेतरछे; पण सर्व प्रकारनां दुःखोनूकारण देवद्रव्यनुं भक्षण करते बीलकुल ठीक नथी.५६ भ्रातुरित्युपदेशेन, मौनी सिंहस्तदोत्थितः। एकान्ते भार्ययाऽभाणि, हा! मोग्ध्याद् वंच्यसे कथम् // कपोलकल्पितैयद्वा, को नाम न हि वंच्यते! / परं यथा तथा सर्व--मर्ध वाऽऽदत्स्व तन्निधिम् // 58 // अर्थ-आप्रमाणे भाइनो उपदेश सांभळी मौन रहेलो सिंह त्यांथी उठ्यो, तेने एकांतमां तेनी पत्नीए का के-"तमे भोळपणथी K केम ठगाओ छो? अथवा कपोलकल्पित वातोथी कयो पुरुष न ठगाय? परंतु जेम तेम करीने सर्व निधि आपणे ताबे करो, अथवा संपूर्ण निधि न आपे तो, छेवटे अरधुं धन पण तमे ग्रहण करो" // 57-58 // एवं भारितः सिंहो, लड्डनत्रितयं व्यधात् / अहं पृथग भविष्यामी-त्युवाच स्वजनानपि // 59 // अर्थ-एप्रमाणे भार्यांना समजाववाथी प्रेरायेला सिंहे त्रण दिवस लांघण करी, अने पोताना सगांसंबंधीओने कयु के, हुँ जुदो थइश तेषां बलेन वेश्मा, निधानाधे च सोऽग्रहीत / समुद्रस्तु ततः शत्र-जययत्राचिकीरभूत्॥६॥ अर्थ-सगां-संबंधीओनी लागवग पहोंचाडी तेओना वल वडे सिंहे समुद्र पासेथी घर अने निधाननो अरपो भाग ग्रहण कर्यो. त्यार पछी समुद्रे श्रीशत्रुजयतीर्थनी यात्रा करवानो अभिलाप कर्यो. निधानार्थ व्यये तीथे, नागपुण्यार्थमित्यसो / यावञ्चलति सिंहेन तावद्राज्ञे निवेदितम् // 61 // : 6*************** सा REACTRESEOCESS Jun Gun Aaradha ** M Ac:Gunratnasuri M.S

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