Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 16
________________ चरित्रं 4 पोतानी स्वीथी मेरायेलो नानो भाइ सिंह बोल्यो के॥४८॥ नाभाका कन्या वराहो जाताऽसौ, पर नोद्वाहिता पुरा / धनं विनाऽथ तत्प्राप्ती, सोत्सवेन विवाह्यते // 49 // है। अर्थ- आ कन्या वरने योग्य थइ छे, परंतु अत्यार सुधी धन विना तेनुं लग्न कर्यु नथी, पण हवे धननी प्राप्ति थवाथी तेनो महोत्सव पूर्वक विवाह करीए' // 49 // . दध्यौ समुद्रः श्रुत्वेति, स्वभावाद् दुष्टधीरसौ। भार्यया प्रेरितो जातो, वात्येरितकृशानुवत् // 50 // 6 अर्थ-आवं नाना भाइर्नु अयोग्य कथन सांभली समुद्रे विचार कर्यो के-आ स्वभावथीज दुष्ट बुद्धिवाळो छे, अने हमणां वळी स्त्रीनी प्रेरणाथी जेम पवनना सुसबाटथी अमिनी वृद्धि थाय तेम आनी पण दुष्टबुद्धि अधिक वृद्धि पामी छे. खरेखर दुनियामां स्त्रीओए महान् महर्षिओने पण पोताना मनोहर तीत्र कटाक्ष तेमज वाग्बाणोथी पोताने वश करी लीधा छे, तो पछी आना जेवो द एक सामान्य मनुष्य तेनी आगळ | करी शके? // 50 // A. सुवंशजोऽप्यकृत्यानि, कुरुते प्रेरितः स्त्रिया। स्नेहलं दधि मनाति, पश्य मन्थानको न किम?॥५१॥ BI अर्थ-उच्च कुळमां जन्म पामेल पुरुष पण स्त्री वडे परायेलो नहिं आचरवा योग्य अकृत्य आचरण करे छे, कारण के, सुवंशथी। .. थयेलो-सारा वांसथी बनेलो रवैयो स्त्री वडे प्रेरायेलो छतो शुं स्नेहवाळा-चिकाशदार दहींनुं मथन करतो नथी? अर्थात् करेज छे.. देवद्रव्योपभोगेन, घोरां यास्यति दुर्गतिम् / ततो बन्धुरयं बन्धु-रया बोध्यो गिरा मया // 52 // ESCISSORESGARRIAK FLM Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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