Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat Author(s): Merutungasuri Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 8
________________ LAGLAGASCARGUS ॐ5555 अर्थ-प्रभुए ते समये श्रीपुंडरीक गणधरनी समक्ष आ प्रमाणे कधु के, 'आ महातीर्थ शत्रुजयगिरि.अनादि अनंत छे, पण ते कानाभाका लक्रमे संकोच अने विस्तारने पामेछे // 19 // . चरित्रं मूले पृथुः सम्प्रति योजनानि, पञ्चाशदूर्ध्व दश योजनानि / उच्चस्तथाऽष्टावथ सप्तहस्तो, भूत्वा पुनः प्राप्स्यति वृद्धिमेवम् // 20 8 अर्थहालमां आ गिरि मूळमां पचास योजन विस्तारवाळो, उपर दस योजन विस्तारवाळो, अने उंचाइमां आठ योजनप्रमाण छे. & अने आ अवसर्पिणीमां घटतो घटतो छठ्ठा आरामां छेवटे सात हाथप्रमाण थइ पाछो उत्सर्पिणीमा विस्तारने पामशे // 20 // शत्रञ्जयश्रीविमलाद्रिसिद्ध-क्षेत्रेतिनामत्रितयं सदाऽस्य / श्रीपुण्डरीकेत्यभिधा चतुर्थी, भविन् ! स्थितेस्तेऽथ भविष्यतीह // 21 // अर्थ-हे भव्य पुण्डरीक ! आ गिरिनां शत्रंजय, विमलाचल अने सिद्धक्षेत्र ए प्रमाणे त्रण नाम शाश्वता छे, अने अत्रे तारो निवासी | थवाथी श्रीपुंडरीक नामर्नु चोथु नाम प्रसिद्ध थशे // 21 // "सेव्य शत्रुञ्जयशैलमेन-मनेनसः स्युर्ननु पापिनोऽपि / भुवोऽनुभावात् किल मृत्तिकापि, प्राप्नोति सर्वोत्तमरत्नभावम् // 22 //Page Navigation
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