Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 6
________________ S चरित्रं स्पष्ट रीते कई के, हे राजन् ! मारुं समस्त वृत्तान्त सांभळो // 12 / / भािंक श्रेष्ठी धनाढ्यनामाऽहं, श्रीवसन्तपुरे वसन् / श्रीशत्रुजययात्रार्थ, चलितोऽत्र समागमम् // 13 // IPL अर्थ-हुँ वसंतपुर नगरमां निवास करुं छु. मारुं नाम धनाढ्य शेठ छे, अने श्रीशजय तीर्थनी यात्रार्थे जतां अहीं मारु आवq थयुं छे. 18| कः श्री शत्रुञ्जयस्तत्र, यात्रया किं फलं नृपे। पृच्छतीति भाग्यलभ्याः, सभ्याः पौराणिका जगुः // 14 // अर्थ-त्यारे, भाग्यथी जेमनी माप्ति थइ शके एवा महा धुरंधर सभामां बेठेला पौराणिक पुरुषोने राजाए पूछयु के, 'श्री शत्रु-18... जयतीर्थ कयुं ? तथा तेनी यात्राथी शुं फळ थाय?'। ए प्रश्ननो उत्तर पौगणिक पुरुषोए राजाने स्पष्टतापूर्वक समजावतां कयु के-॥ इक्ष्वाकुभूमौ भरतेऽत्र पूर्व, श्रीनाभिनामा कुलकृद् बभूव।। सद्वल्लभाऽभूद् मरुदेवी तस्याः, कुक्षौ जिनः श्रीवृषभोऽवतीर्णः // 15 // अर्थ-पहेलां आ भरतक्षेत्रमा इक्ष्वाकुभूमिने विषे श्रीनामि नामनां कुलकर थया, तेमने मरुदेवी नामनी श्रेष्ठ पत्नी हती. तेमनी कुक्षिमा श्रीऋषभदेव जिनेन्द्रनो जन्म थयो // 15 // असंख्यवर्षाणि न धर्मकर्मा-ऽभिज्ञो जनोऽभूत् समयानुभावात् / प्रकाश्य तन्मार्गयुगं तदत्रा-ऽवतीर्य सोऽनीतिपथं लुलोप // 16 // .. June ASIS P YRIGunratnasun M.S. सर

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