Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 4
________________ जे नगर अनेक श्रीपति, अनेक ब्रह्म, अनेक जिष्णु, अने अनेक-श्रीद वडे शोभायमान होवाथी तेणे स्वर्गपरने पण जीती लीधु हतुं। नाभाक | स्वर्ग पुरनी अंदर श्रीपति एटले कृष्ण एकज छे, ज्यारे क्षितिमतिष्ठितनगरमां श्रीपति एटले साहुकारो तथा राजाओ अनेक हता। स्वर्ग पुरनी अंदर ब्रह्म एटले ब्रह्मा एकज छे, ज्यारे आ नगरमां ब्रह्म एटले ब्राह्मणो अनेक रहेता इता / स्वर्ग पुरनी अंदर जिष्णु // 3 // 5 एटले इन्द्र एकज छे, ज्यारे आ नगरनी अंदर जिष्णु-जयनशील एटले विजेता मोटा मोटा सामंतो तथा योद्धाओ अनेक इता। स्वर्गपुरमां श्रीद एटले कुबेर एकज छे, ज्यारे आ नगरनी अंदर श्रीद एटले लक्ष्मीनुं दान करनारा दानवीर पुरुषो अनेक हता। IP आ प्रमाणे दरेक रीते स्वर्ग पुरथी सितिमितिष्ठितनगर चडियातुं हतुं // 6-7 // सर्वाङ्गरत्नाभरणाभिभूषितै-र्यदीयभोगीशशतैस्तिरस्कृता। शीर्षस्फुरद्रत्नवरेकमण्डिता, भोगावती युक्तमगाद्रसातलम् // 8 // अर्थ-जे क्षितिप्रतिष्ठित नगरीमां वसता सर्वांगे रत्नोना आभूषणोथी सेंकडो भोगीशो वडे तिरस्कार पामेली भोगावती नगरी & रसातलमां चाली गइ ते युक्तज थयुं छे. कारण के-ते भोगावती नगरी, मस्तकने विषे स्फुरायमान उत्तम शेषमणिवाळा एकज भो गीश वडे शोभती छे, ज्यारे आ नगरीमां अनेक भोगीशो एटले समर्थ भोगीओ रहे छे / वळी भोगावती नगरीमा रहेता भोगीश 13 एटले शेषनागना मस्तकने विषेज रत्न-मणि छे, ज्यारे आ नगरीमां बसता सेंकडो भोगीशोने सर्वांगे रत्नोनां आभूषणो छ / आम & प्रमाणे क्षितिमतिष्ठित नगरीथी दरेक रीते उतरती भोगावती नगरी लज्जा पामीने रसातलमा चाली गइ छ / // 8 // aun Aaradhak ROCECESSASS 1565555ऊर A SAR

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