Book Title: Nabhak Raj Charitram Prat
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 5
________________ 15 // 4 // तत्र श्रीमान् महारूप-निरूपितपुरन्दरः। राजा नाभाकनामाऽभूद, अभूमिः पापतापयोः // 9 // नाभाक अर्थ ते नगरने विषे समृद्धिमान, पोतानां अलौकिक सौंदर्य वडे दृष्टान्तभूत करेलो छे इन्द्रने जेणे एवो, तथा पाप अने संतापर्नु अस्थान नाभाक नामनो राजा हतो // 9 // | पुरा कलाकेलिरनङ्गभावं, वधूद्वयेनापि जगाम दिव्यन् / वधूसहस्रैरपि सैष खेलन्, अवाप सर्वाङ्गमनोहरत्वम् अर्थ-पुरातन समयमां, कामदेव वे स्त्रीओ साथे खेलतो छतो पण अनंगपणाने पाम्यो हतो, परंतु आ नामाकराजा तो हजारो स्त्रीओनी साथे क्रीडा करतो छतो पण सर्वांगे मनोहरपणाने पाम्यो हतो / कामदेव रति अने प्रीति नामनी बेज स्त्रीओ साथे क्रीडा करवा छतां अनंगपणाने एटले अंगरहितपणाने पाम्यो हतो, पण आ राजा तो हजारो स्त्रीओनी साथे खेलतो हतो छतां पण सर्वांगे मनोहरपणाने पाम्यो हतो // 10 // तमन्यदा मदालीनं, सभायामेत्य भूपतिम् / सत्प्राभृतं पुरस्कृत्य, श्रेष्ठी कश्चिन्नमोऽकरोत // 11 // अर्थ-एक दिवसे ते राजा पोतानी सभामां हर्षित चित्ते बेठो हतो, ते अवसरे कोइक श्रेष्ठीए आवीने राजानी सन्मुख सुंदर है भेटणुं मूकी नमस्कार कर्यो // 11 // कस्त्वं कुतः समायातः कुत्र यासीति. भून उता / पृष्टे स्पष्टमथाचष्ट, श्रेष्ठीराचन्निशम्यताम् // 12 // अर्थ-त्यारे सजाए ते शेठने पूछयु के, तमे कोण छो? क्याथी आव्या छो? अने क्यां जाओ छो ? / तेना प्रत्युत्तरमा श्रेष्ठीए LESSOASIS JECTROCESSF SANSASSABAS RAccunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak 1

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