Book Title: Munisuvrat Swami Charitra
Author(s): Mangaldas Trikamdas Zaveri
Publisher: Prachin Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 277
________________ ७८ [ સિદ્ધિદાયક મંત્રસંગ્રહ निन्जियदप्पुध्धुररिउ-नरिंदनिवहा भडा जसं धवलं । पावंति पावपसमिण !, पा:जिण ! तुह प्पभावेण ।।१७॥ रोमजलजलणविसहर-चौरारिमइंदगयरणमयाइं। पासजिणनामसंकि-तणेण पसमंति सव्वाइं ॥१८॥ एवं महाभयहरं, पासजिणंदस्स संथवमुआरं। भवियजणाणंदयरं, कल्लाणपरंपरनिहाणं ॥१९ ॥ रायभय-जक्ख-रक्लस-कुसुमिण-दुस्स उण-रिक्खपीडासु । संझासु दोसु पंथे, उपसग्गे तह य रयणीसु ॥ २० ॥ जो पढइ जो अनिसुणइ, ताणं कहणो य माणतुंगस्स । पासो पावं परमेउ, सयलभुवणचिअञ्चलणो ॥ २१ ॥ उवसांगते कमठा-सुरम्नि झाणाओ जो न संचलिओ। सुर-नर-किन्नरजुईहिं, संथुओ जयउ पासजिणो॥२२॥ एअस्स मज्झयारे, अठारसअक्खरेहिं जो मंतो। जो जाणइ सो झायइ, परमपयत्थं फुडं पास ॥ २३ ॥ पासह समरण जो कुणइ, संतुहियएण। अटुत्तरसयत्राहिमय, नासइ तस्स दूरेण ॥२४॥ श्रीबृहच्छान्तिस्मरणम् । भो भो भया ! शृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतद्, ये यात्रामा त्रिभुवनगुरोराहता भक्तिभाजः। तेषां शान्तिर्भवतु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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