Book Title: Mukti ka Amar Rahi Jambukumar Author(s): Rajendramuni, Lakshman Bhatnagar Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay View full book textPage 7
________________ सिद्धान्तो को जन-जन के हित में प्रयुक्त करने के महान अभियान मे भगवान के प्रथम पट्टधर आर्य सुधर्मा स्वामी का गौरवमय योगदान रहा था । इन्ही के उत्तराधिकारी द्वितीय पट्टधर आर्य जम्बूस्वामी धे। सुयोग्य गुरु आर्य सुधर्मा स्वामी के योग्य शिष्य के रूप मे जम्बूस्वामी ने अपने काल मे जितनी व्यापक कीर्ति अजित की थी-वह अद्भुत है। वे अत्यन्त प्रभावशाली आचार्य थे और उनके समय मे धर्म की प्रगति भी विपुलता के साथ हुई। श्रमणसघ को निश्चित आकृति मिली और धर्मानुराग बढना चला गया। भगवान महावीर स्वामी के सिद्धान्तो के प्रचारप्रसार का वह प्रारम्भिक काल ही था, अत. आचार्यों की बड़ी गम्भीर भूमिका स्वाभाविक ही थी और आर्य जम्बू स्वामी ने बडी प्रतिभा और मेधा का परिचय देते हुए उस भूमिका का निर्वाह किया था। आर्य जम्बूस्वामी आज से कोई ढाई हजार वर्ष पूर्व जन्मे थे। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणीकाल के अन्तिम तीर्थकर थे और जम्बूस्वामी इस काल के अन्तिम केवली स्वीकार किये जाते है। उनका त्याग और वैराग्य अद्वितीय कोटिका था । अपार वैभव के उत्तराधिकार, स्नेहमय अभिभावको का प्यार और आठ-आठ वधुओ के हृदयोपहार को उन्होने तृणवत त्यागकर सयम ग्रहण कर लिया था,। विरक्ति की दिशा मे अग्रसर होने वालो के लिए उनका आचरण अनुपम आदर्श है । पाणिग्रहण के आगामी दिवस ही जम्बूकुमार दीक्षा प्राप्त करने को उद्यत हो गये थे। नव वधुओ ने उन्हे ससार-विमुखता से दूर करने काPage Navigation
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