Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ 6 . मृत्यु की दस्तक श्री मुक्तदा हसन अजहरी ने कुरआन और हदीस के आधार पर मृत्यु की विवेचना प्रस्तुत की है। इनके अनुसार मृत्यु अपरिहार्य सत्य है और उसके बाद नये जीवन का आगमन होता है। उन्होंने मृत्यु के बाद आत्मा की अवस्था, कब्र की अवस्था तथा सकयत् / (मरणासन्न) अवस्था के प्रत्ययों की विवेचना करते हुए इमामग़जाली, शाहवलीउल्लाह, और इमामइब्न कय्यूम के कथनों को उद्धृत किया है। इस्लाम की आस्था है कि मृत्यु के पश्चात् जब न्याय का दिन स्थापित होगा तब सम्पूर्ण मानव एवं जिन्न को जीवित करके उन्हें एकत्र किया जायेगा और उनके कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नर्क का अधिकारी बनाया जायेगा, जहाँ मनुष्य दण्ड या अच्छा प्रतिफल भोग करेगा। द्वितीय खण्ड - शास्त्र . दूसरे खंड में धर्म की धारणा को स्पष्ट करने के लिये प्राचीन शास्त्रों; विशेषकर उपनिषद, पुराण, तंत्र, ज्योतिष और कर्मकाण्ड, के आधार पर मृत्यु-सम्बन्धी विचार प्रतिपादित किये गये हैं। __ तंत्र विद्या के आचार्य श्री व्रजबल्लभ द्विवेदी ने शास्त्रों में मृत्यु के नाना प्रकार की व्याख्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है। नित्याषोडशिकार्णव नामक त्रिपुरा-तेज की टीका के आधार पर बताया गया है कि काल, मृत्यु, यम और व्याधि वास्तव में एक ही तत्त्व के पर्यायवाची शब्द हैं। कठोपनिषद् में यम और नचिकेता का संवाद है। इसमें मृत्यु को ही वैवस्वत और अंतक भी कहा गया है। ये दोनों यम के ही नाम हैं। योग शास्त्र में भी काल शब्द मृत्यु का ही सूचक है। मृत्यु के रहस्य को जानने की नचिकेता की उत्कट अभिलाषा को देखकर यमराज इस पूरे उपनिषद् में इसके रहस्य को समझाते हैं। यहां स्पष्ट बताया गया है कि जो परलोक को नहीं मानता, वह जन्म-मृत्यु के निरन्तर गतिशील चक्र में चक्कर काटता रहता है। आगे इस पूरे उपनिषद् में मृत्यु पर विजय प्राप्त करने की पद्धति वर्णित है। पूरा उपनिषद्-साहित्य मनुष्य की मृत्यु पर की गई विजय-यात्रा का दस्तावेज है। समस्त उपनिषदों में भारतीय दर्शनों एवं धर्मशास्त्र के ग्रन्थों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक पुरुषार्थों की विशद् व्याख्या मिलती है। मुक्त जीव किस शाश्वत् स्थिति में रहता है, इस विषय पर प्रत्येक दर्शन की अपनी-अपनी मान्यता है, किन्तु मृत्यु के पाश से वह सदा-सदा के लिये मुक्त हो जाता है, इस विषय में सभी दर्शन एकमत हैं। जन्म और मृत्यु का चक्र सदा-सर्वदा के लिये कभी नहीं रुकता। ___ श्री प्रभुनाथ द्विवेदी ने उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता के आधार पर मृत्यु की अवधारणा पर प्रकाश डाला है। छान्दोग्योपनिषद् में एक आख्यान के आधार पर यह सिद्ध किया गया है कि सभी इन्द्रियों में प्राण श्रेष्ठ है। ब्राह्मण ग्रन्थों और उपनिषद् ग्रन्थों में मृत्यु को नाना रूपों में परिभाषित किया गया है - अग्नि मृत्यु है, प्राण मृत्यु है, अवांग प्राण मृत्यु है, संवत्सर मृत्यु है, बुभुक्षा मृत्यु है, प्रजापति मृत्यु है, श्रम मृत्यु है, आदित्य भी मृत्यु है, दिन