Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ [१२] मोक्षशास्त्रके कर्ता श्री उमास्वामीका संक्षिप्त जीवनचरित्र आचार्यप्रवर श्री उमास्वामीका नाम 'तत्त्वार्थसूत्र' नामक ग्रन्थके कारण अजर अमर हैं। यह ग्रन्थ जैनोंकी 'बाईबल' है। और खूबी यह हैं कि संस्कृत भाषामें सबसे पहला यही ग्रन्थ हैं। सचमुच आचार्य उमास्वामीजीने ही जैन सिद्धांतको प्राकृतसे संस्कृत भाषामें प्रकट करनेका श्री गणेश किया था और फिर तो इस भाषामें अनेकानेक जैनाचार्योने ग्रन्थ रचना की। श्री उमास्वामीकी मान्यता जैनोंके दोनो सम्प्रदायों-दिगम्बर और श्वेतांबरोंमें समान रूपसे है। और उनका 'तत्त्वार्थसूत्र' ग्रन्थ भी दोनों सम्प्रदायोंमें श्रद्धाकी दृष्टि से देखा जाता है। किन्तु ऐसे प्रख्यात आचार्यके जीवनकी घटनाओंका ठीक हाल ज्ञात नहीं है। श्वेताम्बरीय शास्त्रोंसे यह जरूर विदित है कि न्यायाधिका नामक नगरीमें उमास्वामीका जन्म हुआ था। उनके पिताका नाम स्वाति और माताका नाम वात्सी था। वह कौभीषणी गोत्रके थे, जिससे उनका ब्राह्मण या क्षत्री होना प्रकट है। उनके दीक्षागुरु ग्यारह अङ्गके धारक घोषनन्दि श्रमण थे और विद्याग्रहणकी दृष्टि से उनके गुरु मूल नामक वाचकाचार्य थे। उमास्वाति भी वाचक कहलाते थे और उन्होंने 'तत्त्वार्थसूत्र' की रचना कुसुमपुर नामक नगरीमें की थी। दिगम्बर शास्त्रोंमें उनके गृहस्थ जीवनका कुछ भी पता नहीं चलता हैं। साधु रूपमें वह भी कुन्दकुन्दाचार्यके पट्ट शिष्य बताये गये है और श्री 'तत्त्वार्थसूत्र' की रचनाके विषयमें कहा गया है कि सौराष्ट्र देशके मध्य उर्जयन्तगिरिके निकट गिरनार नामके पत्तनमें आसन्न भव्य, स्वहितार्थी, द्विजकुलोत्पन्न श्वेताम्बर भक्त "सिद्धय्य" नामक एक विद्वान श्वेतांबर मतके अनूकुल शास्त्रका जाननेवाला था। उसने 'दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' यह एक सूत्र बनाया और उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 302