Book Title: Mayavi Rani
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद १२ राजा मदनसुन्दर ने खड़े होकर, सभा को संबोधित करते हुए कहा : । 'राजेश्वरों और राजकुमारों, हमारे ऊपर परमात्मा जिनेश्वर देव की कृपा बरसी है। राजकुमारी सही-सलामत वापस लौटी है...। हम राजकुमार मेघनाद के उपकार को कभी भी नहीं भूल सकते। राजकुमार ने मदनमंजरी की प्रतिज्ञा पूरी की है, अतः मैं मदनमंजरी से अनुरोध करता हूँ कि वह राजकुमार के गले में वरमाला आरोपित करके सभी के मन को आनंदित करे।' ___ सोलह सिंगार सजाकर राजकुमारी हाथ में वरमाला लेकर मेघनाद के सामने आई। और उसने राजकुमार के गले में वरमाला आरोपित कर दी। 'राजकुमार मेघनाद की जय हो!' की आवाज से वातावरण गूंज उठा। सभी राजा और राजकुमार वगैरह ने मेघनाद को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। उसके साथ मैत्री का रिश्ता बाँधा। मेघनाद ने सभी को आदरपूर्वक बिदाई दी। राजा मदनसुन्दर ने मेघनाद को एक सुन्दर महल दिया। मदनमंजरी के साथ राजकुमार मेघनाद उस महल में सुख-चैन से रहने लगा। चंपानगरी के प्रजाजन रात-दिन मेघनाद के व्यक्तित्व की प्रशंसा करने लगे। ___ एक दिन मेघनाद ने मदनमंजरी से कहा : 'देवी, अब हमको रंगावती नगरी जाना चाहिए। मेरे माता-पिता विरह से व्यथित होंगे।' मेघनाद ने राजा मदनसुन्दर से बात की। राजा मदनसुन्दर और रानी प्रियंगुमंजरी ने पहले तो काफी दुःख महसूस किया, पर बाद में 'बेटी तो आखिर पराया धन है, एक न एक दिन उसे बिदा तो करना ही है...।' मान कर अपने दिल को कड़ा किया। राजा ने अनेक हाथी-घोड़े भेट दिये । पाँच सौ सैनिकों की फौज दी। एक सुन्दर रथ दिया! सोना-चाँदी और हीरे-जवाहरात से ढंक दिया राजकुमार व राजकुमारी को! राजा-रानी ने मदनमंजरी को प्यार भरी हितशिक्षा दी। शुभ मुहूर्त में मेघनाद ने राजकुमारी के साथ रंगावती की ओर यात्रा प्रारंभ की। ___ सब से आगे पच्चीस हाथियों का काफिला चलता है...। उसके पीछे शस्त्रसज्ज सौ सैनिक कतारबद्ध चल रहे हैं। फिर राजकुमार का रथ चल रहा है...। और सब के बाद चार सौ सैनिक चल रहे हैं। इस तरह पूरा काफिला सज-धज कर चल रहा है। भोजन का वक्त होता है तो डेरे-तम्बू डालकर पड़ाव रखा जाता है | भोजन For Private And Personal Use Only

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