Book Title: Mayavi Rani
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद ३१ ___ 'प्रिये, अब तू मुझे धनराज कहना | मंदिर के यक्षराज ने मेरा नाम धनराज रखा है... और मुझसे वरदान माँगने को कहा है...। मैंने उनसे कहा कि मैं मेरी पत्नी से पूछकर आता हूँ... तब तक आप रुकना । तो उन्होंने हामी भर ली। बोल... मैं उनके पास क्या माँगूं?' धन्या की खुशी का पार नहीं रहा। उसने कहा : 'स्वामिन! आपकी प्रभुभक्ति आज सफल हो गयी है। अपने सब दुःख दूर हो गये समझना। आप जाकर यक्षराज से कहना कि 'हे यक्षराज, मैं हमेशा-हर पल विवेकवान बनूँऐसा वरदान दो। चूंकि सभी गुणों में विवेक श्रेष्ठ है। और विवेक ही सभी संपत्ति का मूल है।' धनराज तेजी से चल कर गया मंदिर में। उसने यक्षराज को संबोधित करके जैसे धन्या ने कहा था... उसी तरह कह दिया। यक्षराज ने खुश होकर विवेकी होने का वरदान दे दिया। ____ धनराज वापस घर पर आया । उसे भूख लगी थी। वह भोजन करने बैठता है और उसकी नजर गई अपने तेल व खिचड़ी से सने हुए हाथ पर! उसने धन्या से कहा : 'मुझे गरम पानी दे... मैं हाथ धोकर बाद में भोजन करूँगा।' धन्या ने तुरंत ही गरम पानी दिया। उसने सोचा : ‘सचमुच, अब इनका विवेक जाग उठा है... अब तो इनका जीवन धन्य हो उठेगा।' धन्या का चेहरा गुलाब सा खिल उठा। उसने प्यार के साथ धनराज को भोजन करवाया। __भोजन करने के बाद उसने कुछ समय आराम किया। उसने अपने जीवन में पहली बार ही आराम किया वरना तो यह भोजन करके तुरन्त काम पर चला जाता था । धनराज अपने मन में सोचता है : 'इतने बरस दान दिये बिना और सुखभोग किये बिना फिजूल ही बह गये...। मेरा धन जंगल के फूलों की तरह क्या काम का?' यों सोचते-सोचते उसको नींद आ गयी। ___ अगले दिन सुबह उठकर शुद्ध कपड़े पहनकर वह जिनमन्दिर मे गया। परमात्मा के दर्शन करके वह गुरुदेव को वंदना करने के लिया गया। दोपहर में बारह बजने पर उसने गरम पानी से स्नान किया। शुद्ध-श्वेत वस्त्र पहनकर हाथ में पूजन की सामग्री लेकर वह पूजा करने के लिये मन्दिर में गया। उसने खुद अपने हाथों चंदन घीसा । मुखकोश बाँधा । For Private And Personal Use Only

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