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श्रेष्ठिकुमार शंख
३. श्रेब्धिकुमार शंख। बहुत पुराने समय की यह कहानी है। पर है बड़ी मजेदार...रसपूर्ण और रोमांचक!
विजयवर्धन नाम का बड़ा नगर था। उस नगर का राजा था जयसुंदर और रानी थी विजयवती।
राजा-रानी को एक ही पुत्र था...उसका नाम था भुवनचन्द्र!
राजकुमार भुवनचन्द्र के तीन दोस्त थे। सेनापति का पुत्र सोम, श्रेष्ठि का पुत्र शंख और पुरोहित का पुत्र अर्जुन | ये चारों जिगरी दोस्त थे। बचपन से ही उनकी दोस्ती थी...| जवान हुए तो भी साथ ही खेलते... साथ ही खाते...!!
सोम, शंख और अर्जुन, भुवनचन्द्र को ज्यादा महत्व देते थे। एक तो वह राजकुमार था...दूसरा वह विनीत था और बुद्धिशाली था। जबकि राजकुमार का दिल शंख पर विशेष स्नेह रखता था... चूंकि शंख बुद्धिमान था, दयालु था, और पराक्रमी भी था।
एक दिन चारों मित्र बगीचे में घूम रहे थे। इतने में एक पेड़ के नीचे उन्होंने एक जटाजूटधारी बाबा को धूनी रमा कर बैठा हुआ देखा।
राजकुमार और दोस्तों ने जाकर बाबाजी को प्रणाम किया। राजकुमार को आशीर्वाद देते हुए बाबा ने कहा : 'कुमार, तू पातालकन्याओं का पति होगा!' राजकुमार यह सुनकर बाबाजी के पास बैठा। उसने बाबाजी से पूछा :
'बाबाजी, इस मनुष्यों की दुनिया में तो पाताल की कन्याएँ आयेगी कहाँ से? आपको यदि पता हो तो बताओ कि पातालकन्याएँ मिलेंगी कहाँ पर? और कैसे मिलेंगी?' बाबा ने कहा :
'राजकुमार, पातालकन्याएँ रास्ते में ही नहीं भटकती हैं। उन्हें पाने के लिये तो कष्ट उठाने पड़ते हैं | जोखिम उठाना पड़ता है! ध्यान से सुन, मैं जो कहता हूँ : यहाँ से कुछ दूरी पर 'विंध्याचल' नाम का पर्वत है | वहाँ उस पर्वत की तलहटी में 'कुडंगविजय' नाम का एक वन है। उस वन में 'सुवेल' नाम के देव का मंदिर है। उस मंदिर की दक्षिण दिशा में कमल के आकार की एक पत्थर की चट्टान है। उस चट्टान को यदि खिसकाया जाये तो नीचे 'केयूर'
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