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श्रेष्ठिकुमार शंख किया चित्रकारों ने। राजा चित्र देखकर प्रसन्न हो उठा। उसने चित्रकारों को अच्छी खासी धनराशि देकर उन्हें खुश करके बिदा किया।
इधर शंखदेव का देवलोक का आयुष्य पूर्ण हुआ। रानी विजया ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। राजा ने पुत्र के जन्म का बड़ा भारी उत्सव मनाया। और पुत्र का नाम रखा जयकुमार |
जयकुमार को बडे लाड़-प्यार से और नाज से रखा जाने लगा। जब वह कुछ बड़ा हुआ तो एक दिन नगर का कोटवाल न जाने कहाँ से अपने साथ तीन बच्चों को लेकर आया और महाराजा से निवेदन किया : ___ 'महाराजा, ये तीन बच्चे अनाथ हैं | इनकी माँ अकाल मृत्यु का शिकार हो गई है। इन पर दया आने से मैं इन्हें आपके पास ले आया हूँ।' राजा ने बच्चों के सामने देखा । बच्चे सुन्दर और सुशील प्रतीत हुए।
राजा ने बच्चों को प्यार से सहलाते हुए कहा : ‘बच्चों, तुम आज से राजमहल में ही रहना! राजकुमार के साथ रहना...खानापीना, खेलना-कूदना और पढ़ाई करना। राजकुमार की सेवा करना।'
'जी, हम राजकुमार को प्रसन्न रखेंगे।' बच्चों ने कहा । एक का नाम था धनपाल । दूसरे का नाम था वेलंधर और तीसरे का नाम था धरणीधर।।
वे तीनों तो राजकुमार के दोस्त बन गये। कुछ दिनों के सहवास में उन तीनों ने राजकुमार का दिल जीत लिया। राजकुमार उन तीनों के प्रति हार्दिक स्नेह रखने लगा।
राजकुमार ने युद्धकला सीखी। शस्त्रकला और शास्त्रकला दोनों में वह विशारद बना। जवानी की दहलीज पर वह पाँव रखने ही लगा था कि एक दिन महाराजा विजयसेन ने उसने कहा :
'कुमार, मुझे लगता है...कि मेरी मौत निकट है... आज मुझे वैसा स्वप्न भी आया है। अब मैं अपना आत्मकल्याण करना चाहता हूँ - पर इससे पहले राज्यसिंहासन पर तेरा अभिषेक करना चाहता हूँ। फिर मैं दीक्षा ग्रहण करूँगा।'
राजपुरोहित को बुलाकर राज्याभिषेक का मुहूर्त्त पूछा। राजपुरोहित ने पन्द्रह दिन बाद का मुहूर्त दिया। नगर में महोत्सव का प्रारंभ हो गया। गरीबों को दान दिया जाने लगा।
काफी धूमधड़ाके के साथ राजकुमार का राज्याभिषेक किया गया ।
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